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________________ जावपज्जुवासेज्जाहि पाडिहारिएणं पीढफलगसिज्जासंथारएणं उवनिमंत्तेज्जाहि । दोच्चं पि तचंपि एवं वयासी जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए । तेणं तस्स सदालपुत्तस्स आजिविओवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारुवे अज्झथिए ४ समुप्पन्ने एवं खलु मम धम्मारिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलीपुत्ते से णं महामाहणे उपन्ननाणदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते से णं कल्लं इहं हव्यमागच्छइ तए णं तं अहं वंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएणं जाव उवनिमंतिस्सामि तणं कल्लं जाव जलंते समणे भगवं० जाव समोसरीए ॥ इहां सकडालपुत्रको देवता तो आंख गया । सवेरो भगवंत आय गया । तिसके मनमे एसे आइ जे एहि प्रभु तरणतारण न होवे ? तिस वास्ते प्रभु के पास गया । जइने धर्म का निरना कर्या । ते केवली परूपे धर्म की प्राप्ति होइ । आपणी अकल मतपख छोड के दुडाइ तो धर्म पाया । जेकर गोसाला मतीको पूछे के निरना करता तो उलटी शंक्या पाय देते । सो इस कालमें कोइ नहि आखदा मेरा मत जुठा है । आप आपणे को सर्व साचा करी मानते हे । उलटे जीवा को भरममे पावे है । कहे है - मुखपत्ती बांधे नहि तो श्रावक किसका है ? तेतो पूजेरा है । उलटे चोर कोटवालका दंड देवे । एह बडी आश्चर्य बात है । एह मुख बंधए रुप पाखंड तो गोसालेने भी नही चलाया । जेकर सकडालका मुख बंधा होया होता तो इहां पाठ होता सकडाल मुख बंधके बैठा था एक देवता आव्या । इहां कह्या नहिं । इसते एहि संभव होवे हे गोसाला मतभी मुख नही बांधते । एहतो कोइ महा मुढं थया है । सूत्र देखी बीचारेगा सो जीव लिंग कुलिंग विचारेगा ते कूलिंग छांडी सयलिंग अंगीकार करेगा । इसमें संदेह नहि । सत्य छे । - हे भव्य ! प्राणीओ ! तुम किसेका कह्या मत मानो अरु हठवाद पिण मत करो । विचार करके जिम वीतरागे कया है तीम अंगीकार करो । इसमें तमारे को कोइ ओर देवका वचन तो अंगीकार करना नही पडता जो तुमारे को जोर लगता है । जेकर वीतराग की आज्ञा है तो सुखे अंगीकार करो । इसमें दोष नहि । तुम तिम मत करो जिम किसे लुगाइका ६२ * मोहपत्ती चर्चा भरतार परदेश
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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