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( ४४ ) के सम्बन्ध में जैन आचार्य और वैदिक ऋषियों का ऐकमत्य था, इसमें कोई शंका नहीं रहती। ...
अब हम मानव-आहार के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों के अभिप्रायों का संलिप्त सार लिखकर इस अध्याय को पूरा करेंगे।
वैज्ञानिकों के मतानुसार मानव अाहार
वैज्ञानिक शब्द से हमारा अभिप्राय आहार विषयक खोजकर अपना मत प्रदर्शित करने वाले डाक्टरों, वैद्यों और इस विषय की गहराई में उतरकर भोजन सम्बन्धी गुण दोषों पर अपना स्पष्ट अभिप्राय व्यक्त करने वाले विद्वानों से है।
जिन्होंने आर्य-सिद्धान्तों का थोड़ा भी अध्ययन किया है, अथवा आर्य परम्पराओं को श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं उनको तो उक्त जैन, वैदिक सिद्धान्तों के निरूपण से ही विश्वास होजायगा कि मानव का भोजन घृत, दुग्ध और वनस्पतिजन्य पदार्थ ही हैं, परन्तु जो व्यक्ति पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगे हुए हैं और पाश्चात्य विद्वानों व उनके शिष्य भारतीय मानवों की बातों पर ही विश्वास रखने वाले हैं, उनके लिए हम इस प्रकरण में वैज्ञानिकों के कुछ अभिप्रायों को उद्धृत करते हैं ।
मनुष्य तथा मांसभक्षी पशुओं के शरीर की रचना पर ध्यान देते हुए प्रोफेसर विलियम लारेंस एफ० आर० एस० बताते हैं। __ 'आदमी के दांत गोश्त खाने वाले जीवों के दांतों से बिलकुल नहीं मिलते.। मनुष्य के मामने के दो बड़े दांत शेष दांतों के साथ