________________
अन्नपूर्णोपनिषद् में ऋभु ऋषि ने अपने पिता की सलाह के अनुसार अन्नपूर्णा की उपासना करके ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया था,
और उसके पास आये हुये निदाघ ऋषि को भी अन्नपूर्णा की उपासना से ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का उपदेश दिया था। ऋभु मुनि हमेशा एक मन्त्र द्वारा अन्नपूर्णा से अभिलषित अन्न की प्रार्थना करते थे।
पाशुपतब्रह्मोपनिषद् में आहारशुद्धि द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने का निरूपण किया है।
उपर्युक्त उपनिषदों के अतिरिक्त अन्य उपनिषदों में भी स्थान स्थान पर अन्न और अन्नाद शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन सब बातों का विचार करने से यही निश्चित होता है कि उपनिषद्कारों ने मनुष्य भोजन के लिए अन्न को ही प्रधान माना है। मांस आदि अभक्ष्य पदार्थों का कहीं भी नाम निर्देश तक नहीं मिलता | उपनिषदों का ज्ञान क्षत्रियवर्ग से ही प्रचार में आया है, अतः यह भी नहीं कहा जा सकता कि उपनिषद् लिखने वाले ब्राह्मण थे,
और उन्होंने ब्राह्मणों के प्राचार का प्रतिपादन किया है। वास्तव में उपनिषद्काल में पशुयज्ञादि पर्याप्तरूप से भूतकालीन इतिहास चन चुके थे। ..
. . जैन सिद्धांत और वेद-उपनिषदों में हम देख चुके हैं कि मनुष्य का वास्तविक आहार अन्न ही था । दोनों सिद्धान्तकार मनुष्य का जन्मकालीन आहार घृत मधु बताते हैं। इससे मनुष्य के श्राहार