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( २४ ) ... सुविधिनाथ नामक नकम तीर्थकर के धर्मशासन के अन्त समय में जैन श्रमों का अस्तित्वं लुप्त हो गया था, और धर्म सम्बन्धी कोई भी निर्णय जैन माहनों के विचारों पर निर्भर रहता था । माहनों ने इस स्वातंत्र्य लाभ का दुरुपयोग किया। मूल निगम जो केवल अहिंसा धर्म का प्रतिपादन करने वाले थे, उनको वस्त्रों में बांध कर उनके स्थान नये निगमों का निर्माण किया, जिनमें यहों में सुवर्ण-दान, भूमि दाम, आदि दानों का प्रतिपादन किम गया। जैनाचार्यों ने इन नये वेदों के निर्माताओं के रूप में याज्ञवल्क्य सुलतादि का नाम-निर्देश किया है। ..... :
२-वेदों तथा ब्रामण ग्रन्थों में मनुष्य का प्रहार
वेदों का अनुशीलन करने वाले आधुनिक विदेशी विद्वानों तथा उनके अनुयायी भारतीय विद्वानों की ऐसी मान्यता हो गयी है कि ऋग्वेद संहिता जो सबसे प्राचीन ग्रन्थ है, उसमें यव के अतिरिक्त बीहि आदि धान्यों का नाम-निर्देश नहीं मिलता, अतः उस समय के प्रार्यों में धान्य का आहार के रूप में व्यवहार अत्यल्प होता होगा। विद्वानों की इस मान्यता को हम प्रामाणिक नहीं कह सकते, प्राचीन संस्कृत शब्दों-खास कर वैदिक शब्दों का प्रयोग रहस्य-पूर्ण होता था। वह रहस्य उनका प्रयोग करने अपने अथवा उनके शिष्य ही यथार्थ रूप में जान सकते थे, अथवा सरकाशीत निपटुकार उन यादों का रहस्य खोल सकते थे। .. सारा पाने वाला "मास" शब्द केवल यव धान्य को of
:सकी जाति के गोधमादि सर्वधान्यों