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सचित्र ने दूतावास में जाकर रामसभा में व आने का कारण पूस उत्तर में दूध के कहा मैं बाझो
दिन सवा
लिये कि जो कपट किंतुवापस छोट गया+दूसरे सिरे तो जैसे ही
जाने को
वधारी मितु साम
और
तुम हुए ज्ञान कर मैं फिर वो क्या । वूल की। पालः सुनकर रावं चचिय ने कहा महाशय ! इस देश में भीतर या बाहर कहीं कसी के भिनु मिले तो भी इनका दर्शन सकु नहीं माना जाता है यह कहकर के दूत को
राजसभ में प्रवेश करवाया ।
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प के तान्व से दो बातें होती हैं। एक तो यह कि सुहगढ के समय में देशद्ध भिक्षुषों की संख् लोग उन्हें सर्व साधारण मनुष्य
इतनी अधिक बढ़ गई रूप में देखते थे ।
दूसरी यह कि पाटलिपुत्र उसके आस पास के अनेक देशों में रक्तवस्त्र वाले भिक्षुओं का दर्शन अपशकुन माना जाता था । इसका अर्थ यह है कि मुरुण्ड के समय में उत्तर भारत में बौद्ध भिक्षु प्रति विरल संख्या में काचित ही दृष्टिगोचर होते थे।
के
कान् पारसी चीनी यात्री महिपाल नांन
विकरण में बिता है;
भगत की गार सान्नीगा