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काहाधिक भ्रमण होता था बौद्ध भिक्षु तब तक तक शिला के निकट प्रदेश में पहुँच भी नहीं पाये थे।
अशोक के समय में बौद्ध धर्म भारत वर्ष में कुछ समय के लिये चमक उठा था, परन्तु चीन आदि प्रदेशों में यह प्रतिदिन प्रबल हो रहा था और वहां के विद्वान् भितु बौद्ध साहित्य की खोज और प्राप्ति के लिये आते रहते थे। ईशा के पूर्व की पहली शताब्दी तक भारत के बाहर और भारत के द्वार रूप गान्धार पुरुषपुर (पेशावर) तक्षशिला आदि स्थानों में बौद्ध भिक्षु हजारों की संख्या में फैल गये थे । चन्द्रगुप्त के समय में इस भूमि में जितना ब्राह्मण संन्यासियों का प्राबल्य था उससे भी कहीं अधिक बौद्ध भिक्षु दृष्टिगोचर होते थे। इसके सम्बन्ध में जैन सूत्र वृहत्कल्प
की निम्नोबृत गाथायें प्रमाण के रूप में दी जा सकती हैं। . .. पालि मुरण्डदते, पुरिसपुरेसविष मेलमाऽऽवासो। ..,
मिक्खू अतरण सहये, दिणम्मिरको सचिव पुच्छा ।।२२१२ निग्गनलं च अमचे, सम्भावाऽऽइक्खिये भणइदयं । - अटो वहिं च रत्था, नवरंति इहं पवेसणया ॥ .
ब माटलिपुत्र से राजा मुरुड में अपना दूत पुरुषपुर (पेशावर) के राजा के पास भेजा, 'दूम वहां के सजमन्त्री से मिला, मन्त्री ने दूत को ठहरने के लिये मकान दिया और राजा सेपरिने काम सूचित किवा पर दूत राजा से न मिला, दूसरे तथा तीसरे दिन भी दूत सजा से म मिला, 'सक राज