SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१८ ) स्त्री-हिंसा धनहिंसा च प्राणि-हिंसा तथैव च । त्रिविधां वर्जयेत् हिंसां ब्रह्म लोकं प्रपद्यते ॥ २ ॥ अर्थात् स्त्री हिंसा, धन हिंसा, ( पर धन विनाश ) और जीव हत्या ये तीन प्रकार की हत्यायें कही गई हैं । इन हिंसाओं को छोडने वाला मनुष्य ब्रह्म लोक को प्राप्त होता है । दाक्षिण्यं रूप लावvi सौभाग्यमपि चोत्तमम् । धनं धान्यमथारोम्यं धर्मं विद्यां तथा स्त्रियः ॥ २ ॥ राज्यं भोगांश्च विपुलान्ब्राह्मण्यमपि चेप्सितम् । अष्टौ चैव गुणान्वापि दीर्घं जीवितमेव च ॥ ३॥ अहिंसका प्रपद्यन्ते यदन्यदपि दुर्लभम् । हिंसकस्तथा जन्तुर्मांसवर्जयिता भवेत् ॥५॥ अर्थात् - दाक्षिण्य, रूप लावण्य, उत्तम सौभाग्य, धन, धान्य, आरोग्य, धर्म, विद्या, स्त्रियां, राज्य, विपुल भोग, इष्ट ब्राह्मणत्व, आठगुण लम्बा जीवन और भी संसार के दुलभ पदार्थ हिंसकों को प्राप्त होते हैं। यहां अहिंसक शब्द का तात्पर्यार्थ मांस त्यागी जीव से है ।। ३ ।। ४ ।। ५ ॥ अर्थात् सौ वर्ष तक प्रतिमास अश्वमेव करने वाला मनुष्य भी मांस न खाने वाले मनुष्य से समानता प्राप्त करे या न भी करे । सदा जयति सत्रेण सदा दानं प्रयच्छति । सदा तपस्वी भवति मधुमांसस्य वर्जनात् ||७||
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy