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अर्थात्–गौचर भूमि को हलादि से जोतने वाला चौदह मन्वन्तर तक नरक में महान् दुःख भोगता है गौ वध करने से मनुष्य इक्कीस वार नरक गति को प्राप्त होता है इस वास्ते सर्व प्रयत्न से गार्यो का रक्षण करना चाहिए। (श्री विध. ख. १ अ. ४२ पृ. २०२) मधु-मांस - निवृत्ताश्च निवृत्ता मधु-पानतः । काल-मैथुन तचापि विज्ञेयाः स्वर्गगामिनः || ८ ||
अर्थात् - मधु (शहद) मांस से निवृत्त, मद्यपान से दूर रहने बाले और ब्रह्मचर्य से रहने वाले मनुष्यों को स्वगगामी समझना चाहिये | ( श्री वि. ध. ख, २ अ ११७ पृ. २५६ )
मधु मांसं च ये नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः । जन्म प्रभृति मद्यं च दुर्गायतितरन्ति ते ॥ २३॥
अर्थात् - जो मनुष्य जीवन पर्यन्त मधु मांस भक्षण से और मदिरा पान से दूर रहते हैं वे कठिन आपत्तियों को भी आसानी से पार कर लेते हैं ।
( श्री वि. ध. ख. २ . १२२ पृ. २६२ )
श्री हंस ऋषियों को कहते हैं
हिंसा सर्वधर्माणां धर्मः पर इहोच्यते । हिंसया तदाप्नोति यत्किञ्चिन्मनसेप्सितम् ॥ १ ॥
अर्थात् - इस लोक में अहिंसा सर्व धर्मों में उत्कृष्ट धर्म है मनुष्य जो चाहता है अहिंसा से उस इष्ट पदार्थ को पाता है ।