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(४०० ) अत्रि कहते हैंपक्वं वा यदि काऽपक्वं, पाचयेद् यः क्वचिद् यतिः । स्वधर्मस्य तु लोपेन, तिर्यग्योनि व्रजेत् यतिः ॥
अर्थ-जो यति पके हुए अथवा कच्चे खाद्य पदार्थ को पकाता है, वह अपने धर्म का लोप करके तिर्यश्चगति को प्राप्त होता है। जाबाल कहते हैंअन्न-दान-परो भिक्षु, वस्त्रादीनां परिग्रही। उभौ तौ मन्दबुद्धित्वात्, पूतिनरक-शायिनौ ॥
अर्थः-भिक्षान्न में से दूसरों को दान करने वाला और वस्त्रादि का परिग्रह रखने वाला ए दोनों मन्दबुद्धि भिक्षु पूति नरक में जाकर सोते हैं। . बहवृच परिशिष्ट में लिखा है
अन्नदान परो भिनु, श्चतुरो हन्ति दानतः। . दातारमन्नमात्मानं, यस्मै चान्नं प्रयच्छति ॥
अर्थः-भिक्षान्न में से अन्नदान करने वाला भितु चार का नाश करता है, भैक्ष्य देने वाले का, अन्न का, अपना तथा अन्न लेने वाले का। ऋतु कहते हैदासी दासं गृहं यानं, गोभूधान्यधनं रसान् । प्रतिगृह्य यतिम, . हन्याकुलशतत्रयम् ॥