SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६६ ) न्तर तप मानते हैं, क्योंकि बाह्य तप की ही तरह इनसे भी आत्मविशुद्धि ही होती है। । उक्त द्वादश विध तप में से अनशन तप की श्राराधना के अनेक भेद उपभेद जैन सूत्रकारों ने लिखे हैं। जिनमें से कतिपय तपोविधानों का यहां दिग्दर्शन कराते हैं। रत्नावली तप चतुर्थ भक्त-पारणा, षष्ठभक्त-पारणा, अष्टम-भक्त पारणा, आठ षष्ठभक्त और आठ पारणे । चतुर्थ भक्त-पारणा, षष्ठभक्त-पारणा, अष्टमभक्त और पारणा, दशमभक्त-पारणा, द्वादशभक्त-पारणा, चतुर्दश भक्त-पारणा. षोडशभक्त-पारणा, अष्टादशभक्त-पारणा, विंशतिभक्त-पारणा, द्वाविंशतिभक्त-पारणा, चतुर्विंशतिभक्त पारणा, षड्विंशतिभक्त-पारणा, अष्टाविंशतिभक्त-पारणा, त्रिंशद्भक्त-पारणा, द्वात्रिंशद्भक्त-पारणा, चतुस्त्रिशद्भक्त-पारणा, चौतीस षष्ठ भक्त और चौतीस पारणे । चतु स्त्रिद्भक्त, पारणा द्वात्रिंशद्भक्तपारणा,. त्रिंशद्भक्त-पारणा, अष्टाविंशतिभक्त-पारणा, षडर्विशतिभक्त-पारणा, चतुर्विशतिभक्त पारणा, द्वाविंशतिभक्त-पारणा, विंशतिभक्त पारणा, अष्टादशभक्त-पारणा, षोडशभक्त-पारणा, चतुर्दशभक्त-पारणा, द्वादशभक्त पारणा, दशभक्त-पारणा, अभक्त: पारणा, षष्ठभक्त-पारणा, चतुर्थभक्त--पारणा, आठ षष्ठ भक्त और आठ पारणे । अष्टमभक्त-पारणा, षष्ठभक्त-पारणा, चतुर्थभक्तपारणा। । उक्त प्रकार से रत्नावली तप के कुल दिन तीन सौ चौरासी ( ३८४ ) और पारणों के दिन अठ्ठासी. (८८) होते हैं । इस :
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy