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प्रकार एक वर्ष तीन मास और बाईस दिन में रत्नावली की प्रथम परिपाटी पूरी होती है । तथा चार परिपाटियों में यह तप पूरा होता है । पहली परिपाटी में पारणा सर्वकामगुणित आहार से होता है दूसरी परिपाटी में निर्विकृतिक भोजन से होता है । तीसरी परिपाटी में निर्लेप द्रव्यों से होता है । और चौथी परिपाटी में पारणा आयंबिल से होता है। इस प्रकार निरन्तर रत्नावली तप करने से पांच वर्ष दो मास अठ्ठाईस दिन सम्पूर्ण होता है । परिभाषाओं की स्पष्टता
यहां पारिभाषिक शब्दों की स्पष्टता करना उचित समझते हैं ।
सामान्य रूप से मनुष्यों के दैनिक दो भोजन होते हैं, सुबह का और शाम का | जैन श्रमण यों तो एक बार ही भोजन करते हैं, परन्तु अमुक कारण से दो बार मगर दो से अधिक बार भी भोजन लेने का आदेश मिलता है । परन्तु उपवास से लगा कर कोई भी छोटी बड़ी तपस्या करनी होती है, तब वे तप के पूर्व दिन एक ही बार भोजन लेते हैं । इसी प्रकार उपवास के दूसरे दिन भी एक ही बार भोजन लेते हैं । इस तप को चतुर्थ भक्त प्रत्याख्यान कहते हैं, क्यों कि पूर्व उत्तर के दो दिनों के दो और उपवास के दिन के दो ऐसे चार भोजनों का उसमें त्याग होता है ।
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इसी प्रकार दो, तीन, चार, पांच, आदि कितने भी दिन के संलग्न उपवास हो, परन्तु तप के पूर्व उत्तर दो दिनों के दो