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________________ ( १== ) इसमें यह कहा गया है कि श्रमण जिस गृहस्थ के मकान ठहरा है, उसी तरफ से उक्त प्रकार का कोई भोज होने वाला है, अथवा हो गया है, यह बात इधर उधर भेजे जाते पक्कान्नों से उसके घर रहने वाले श्रमस को मालूम होने पर वह उस भोजन की आशा से अपने स्थान को छोड़ कर दूसरी जगह रात बिताये और दूसरे दिन भोजन कराने वाले गृहस्थ के यहां से संस्कृत भोजन लावे | वह श्रमण रात दूसरे स्थान पर इस लिये बिताता है कि जैन श्रमणों के लिये स्थान देने वालों के यहां से आहार पानी वस्त्र पात्रादि लेना मना किया है । इस लिये उसके मकान में रहता हुआ वह मकान मालिक के घर भोजन के लिये जा नहीं सकता । अतः रात्रि अन्यत्र बिताकर प्रथम शय्यातर के घर अच्छे भोजन की लालसा से भिक्षा लेने जाता है, परन्तु ऐसा करने वाला श्रमण दोष का भागी होता है और उसको प्रायश्चित्त की आपत्ति होती है । ५ - दशबैकालिक के इस अवतरण में आये हुए पुल तथा अनिमिष इन दो नामों का स्पष्टीकरण आचाराङ्ग के द्वितीय अबतरण से पूरे तौर से हो जाता है। इसमें मांस के स्थान में पुल शब्द आया हुआ है, जो फल मेवों के गर्भ का बोधक हैं, और अस्थिक शब्द उनचे बीज गुठलियों को सूचित करते हैं। अनिfer का अर्थ भी आचाराङ्ग के इसी अवतरख के स्पष्टीकरण के अनुसार नकली पिष्ट-मत्स्य समझना चाहिए ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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