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( ११ ) "अर्ध्या ऋत्विक श्वसुरः पितृव्यः मातुलः भाचार्यो राजा वा स्नातकः प्रिय वरोऽतिथिरिति ।"
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अर्थ-ऋत्विक श्वसुर, चाचा, मामा, आचार्य, राजा, स्नातक, प्रिय ( स्नेही ) कुँबारा वर, और मान्य अतिथि इतने पुरुष अर्ध के योग्य हैं ।
खादिर गृह्यसूत्र में मधुपर्क के अधिकारी :--
"आचार्य-ऋत्विक, स्नातको राजा- विवाह्य:- प्रिय इति पडर्ध्या: "
अर्थः- आचार्य, ऋत्विक, स्नातक, राजा, विवाह्य ( कन्या परिणय करने वाला वर ) प्रिय, ये छ: पुरुष मधुपके के अधिकारी हैं ।
उयासस्मृति में मधुपर्क के अधिकारियों का निम्नोद्धृत वर्णन है । " विवाह्य स्नातक क्ष्माभृदा - चार्यसुहृत्विजः । अर्ध्या भवन्ति धर्मेण प्रतिवर्ष गृहागताः ॥ ४१ ॥
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अर्थः- विवाह योग्य वर, स्नातक, राजा, प्राचार्य, मित्र, ऋत्विक, ये प्रतिवर्ष घर आने पर अर्घ्य के योग्य होते हैं।
उपर्युक्त भिन्न भिन्न प्रन्थों में मधुपर्क के अधिकारी अर्ध्य पुरुष बताये हैं । उनमें मत भेद है, एक में पांच, तीन में छः और एक में दश की संख्या दी है । तीन ग्रन्थों में जो छः की संख्या दी है उनमें भी ऐकमत्य नहीं है। कोई किन्हीं