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नाम मीठे भोजन का द्योतक है। वैदिक कालीन आर्य लोग अपने यहां आने वाले किसी बड़े आदमी अथवा प्रिय मित्र का सत्कार कर उसे फलों, मेवों अथवा संस्कृत भोजनों से जिमाते थे, उसका नाम मधुपर्क प्रचलित हुआ। बाद के ब्राह्मणप्रन्थों, तथा धर्मशास्त्रों के समय में यह मधुपर्क कुछ विकसित हुआ, और उसके अधिकारियों की संख्या भी निश्चित कर दी गयी ।
मधुपर्क के अधिकारियों के सम्बन्ध में गोमिल गृह्यसूत्रकार कहते हैंषडर्ष्याः मवन्ति ॥ २२ ॥
आचार्य-ऋत्विक - स्नातको - राजा - विवाह्य-प्रियोऽतिथिरिति । ” अर्थ - छ: पुरुष अर्ध के योग्य होते हैं- आचार्य, (अपना वेदाध्यापक), ऋत्विक (अपने ऋतुबद्ध नियत यज्ञों को कराने वाला), वेदाध्ययन समाप्त कर स्नातक बन कर आचार्य के घर आने वाला विद्यार्थी, देशपति राजा, कन्या परिणय के लिये आने वाला वर, और अतिथि होकर आने वाला प्रिय मित्र |
गौतम धर्म सूत्र में नीचे लिखे अनुसार पांच पुरुष मधुपर्क के अधिकारी माने गये हैं
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"ऋत्विगाचार्य श्वसुर पितृव्य मातुलानामुपस्थाने मधुपर्कः ||२८||
अर्थ-ऋत्विक आचार्य, श्वशुर, चाचा, मामा, इन पांचों के अपने घर आने पर मधुपर्क करना ।
बौधायन गृह्य सूत्र में निनोक्त पुरुष मधुपर्क के अधिकारी है