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________________ | 416 - २० به به م PPP0 ه 6बन्ध ه | १ | १ م ज्ञाताहे ه به [1] पूटती विगतो :નં. મૂળધાતુ અર્થ ગણ પદ પુરુષ વચન શ્વસ્તન | સામાન્ય | ક્રિયાતિપસ્યર્થ | 1 |आ+शंस् |७७j | १ |.५.१ | २ आशंसितास्वहे | आशंसिष्यावहे | आशंसिष्यावहि 2 |आ+ चम् पाईं १ | ५.५.| २ | 3 | आचमितास्थ | | आचमिष्यथ | आचमिष्यत 3 |घ्रा [जिघ्र संघg | १ | " 3 | १ घ्राता घ्रास्यति अघ्रास्यत् ડંખવું १ | 3 दंष्टास्मः दक्ष्यामः अदक्ष्याम તપાવવું धूपायितास्थः | धूपायिष्यथः अधूपायिष्यतम् બાંધવું बन्द्धारौ भन्त्स्यतः अभंत्स्यताम् જાણવું | ૯ | ज्ञास्ये अज्ञास्ये 8 |उञ्छ વીણવું ૨ | ૧ उञ्छितासि उञ्छिष्यसि | औञ्छिष्यः 9 मृग શોધવું ૧૦ मृगयितारः मृगयिष्यन्ते | अमृगयिष्यन्त [2] संध्या : 1. 47,263 21/ 9. 54,900 | 17. 61,305 2. 5,251 10. 1,37,250 | 18. 41,78,04,763 3. 47,463 21/ 11. 80,670 | 19. 5,03,31,648 4. 20,832 12. 10,997 20. 20,13,26,592 5. 2,74,500 13. 13,725 21. 16,10,61,27,36,000 6. 94,470 14. 31,049 | 22. 25,88,158 7. 31,110 15. 1,10,820 | 23. 20,005 13/ha 8. 31,102 | 16. 55,410 | 24. साथि 3,16,227 | 25. 1,58,113 [3] संस्कृतमा सवाणा पहाडी :1. द्वाषष्ट्यधिकद्विशतसङ्ख्यायाः त्रयोविंशतिसङ्ख्यया गुणने षट् सहस्राणि षड्विंशत्यधिकानि भवन्ति । 2. पञ्चविंशत्यधिकषट्शतसङ्ख्यायाः पञ्चविंशतिसङ्ख्यया भागे हृते सति पञ्चविंशतिः जायते । . 3. षट्त्रिंशच्छतानां षष्ट्यधिकानां त्रिंशता गुणने एकशतसहस्रमष्टान वशतानि जायन्ते । 4. पञ्चयोजनशतानां दशोत्तराणां एकषष्ट्या गुणने एकत्रिंशत्सहस्राणि शतमेकं दशोत्तरं भवन्ति । स२८ संस्कृतम् - ५ . १५९ . પાઠ-૨/૨૦ %
SR No.022985
Book TitleSaral Sanskritam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
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