SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नव चैत्यवंदन विधि || (४५) सेवयुं नहि, 'आशातना' एटले के आय - सम्यग्दर्शनादि निज गुणोनो लाभ, तेनी शातना - खंडना एटले विनाश थवो. आ आशातनानो सामान्य अर्थ पण जोतां तेमां आत्माने हानि थाय छे माटे ते स्थान सेवयुं नही. प्रभुनी सन्मुख गभाराद्वारे उभा रही प्रभुना स्वरूपनुं चिन्तवन करी असाधारण गुणसूचक प्रभुनी स्तुति करवी, पछी स्वस्तिकादि यथाशक्ति करी चैत्यवन्दन करवुं, चैत्यवन्दनमां त्रणमुद्रानो विधि साचववो, योगमुद्रा, मुक्ताशुक्तिमुद्रा, जिनमुद्रा, योगमुद्रा' एटले बेउ हाथनी दशे आंगलीओ मांहेमांहे अन्तरित करी कमळना डोडा आकारे बेउ हाथ पेट उपर कूणीओ रहे तेम राखवा, आ मुद्राथी प्रभु प्रत्ये आपणी नम्रता थाय छे, प्रभु गुणनी अधिकतानो भास थाय छे, अने यथार्थ एकतानवृत्ति थाय छे, 'मुक्ताशुक्तिमुद्रा' एटले मोती उत्पन्न थवानी छीपना जोडाना आकारे बेउ हाथ सरखा गर्भित राखी ललाट (कपाल) ना मध्यभागे लगाडवा. बीजा आचार्य मध्यभाग आगल राखवा
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy