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( ३४८ ) नवपद विधि विगेरे संग्रह |
तपप उद्यापन थकी, लाधो नवमो सग्ग सुरनरना सुख भोगवी, नवमे भव अपवग्ग ॥ श्र० ८ ॥ हंसविजय कविरायना जी मजलउपर नाव आप तरे पर तारवे मोहन सुहस्वभाव ॥ श्री० ९॥
अथ नोकाखालीनी सज्झाय.
॥ बार जपुं अरिहंतना, भगवंतना रे गुण हुं निशदीस || सिद्ध आठ गुण जाणिये वखाणीये गुण सरि छत्रीश ॥ नोकारवाली वंदीये ॥ १ ॥ चिर नंदिये रे उठी गणीये सवेर || सूत्रतणा गुण गुंथिया, मणिआ मोहन रे मह मोटो मेर ॥ नोका० ॥ २ ॥ पंचवीश उवझायना, सत्तावीश रे गुण श्री अणगार ॥ एकशो आठ गुणे करी, इम जपीयें रे भवियण नवकार ॥ नोका० ॥ ३ ॥ मोक्ष जाप अंगुठडे, वैरी जूठडें रे तर्जनी अंगुली जोय ॥ बहु सुखदायक मध्यमा, अनामिका रे वश्यारथ होय ॥ नोका० ॥४॥ आकर्षण टची अंगुली, वली सुणजो रे ए गणवानी रीति ॥ मेरु उल्लंघन मम करो, मम करजो रे नख