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॥ सज्ज्ञायो॥ अग्रे प्रीति ॥ नोका० ॥५॥ निश्चल चित्ते जे गणे, जे गणे संख्यादिकथी एकांत ॥ तेहने फल होए अतिघj, इम बोले रे जिनवर सिद्धांत ॥ नोक० ॥६॥ शंख प्रवाल स्फटिक मणि, पन्ना जीव रतांजली मोती सार ॥ रूप सोवन रयण तणी, चंदन अवर अगरने घनसार ॥ नोका०॥ ७॥ सुंदर फल रुद्राक्षनी जपमालिका रे रेशमनी अपार ॥ पंचवरण सम सत्रनी, वली वस्तुविशेष तणी उदार ॥ नोका०॥ ८॥ गौतम पुंछंते कह्यो, महावीरे रे ए संयल विचार ॥ लब्धि कहे भवियण सुणो, गणजो भणजो रे नित्य सझायो नवकार ॥ नोका० ९॥ इति ॥
॥श्री सिद्धनी सज्झाय ॥ .. आठ कर्म चूरण करीरे लाल, आठ गुण परसिद्ध । मेरे प्यारे ॥ क्षायिक समकितना धणीरे लाल ॥ वंदु वंदु एहवा सिद्ध ॥ मेरे प्यारे ॥आ०॥१॥ अनंत नाण दरसण धरारे लाल, चोथु वीर्य अनंत ॥ मे०॥ अगुरुलघु सूक्ष्म कह्यारे लाल, अव्याबाध महंत ॥ मे० ॥