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________________ (३४२) नवपद विघि विगेरे संग्रह ॥ न० ॥ ३ ॥ अक्षय स्थिति गुण उपन्योरे लाल, आयु कर्म अभावरे ॥ १० ॥ नाम कर्म क्षये नीपन्योरे लाल, रूपादिक गतिभावरे । ९० न० ॥४॥ अगुरुलघु गुण उपन्योरे लाल, नरहया कोइ विभावरे॥ ९० गोत्र कर्मना नाशथीरे लाल, निज प्रकट्या जस भावरे ॥ हुं० न०॥५॥ अनन्त वीर्य आतमतणुं रे लाल, प्रगट्यो अंतराय नाशरे ॥ हुँ० आठे कर्म नाशीगयारे लाल, अनन्त अक्षयगुण वासरे ॥ ९० न० ॥६॥ भेद पन्नर उपचारथी लाल, अनन्त परम्पर भेदरे ॥ हुं. निश्चयथी वीतरागनारे लाल, किरण कर्म उच्छेदरे ॥ हुं० न० ॥ ७ ॥ ज्ञानविमलनी ज्योतिमारे लाल, भासित लोकालोकरे ॥९॥ तेहना ध्यानथकी थशेरे लाल, सुखीया सघला लोकरे ॥ ९० न० ॥९॥ ॥ इति सिद्धपद सज्झाय ॥ ॥त्रीजा आचार्य पदनी सज्झाय ॥ आचारी आचार्यनो जी, बीजे पद धरो ध्यान; शुभ उपदेश प्ररूपताजी, कह्या अरिहंत समान ॥सूरीश्वर।
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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