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॥ सज्झायो॥ (३४१) दीश्वर तिहां साते ईति संमत ॥ मो० ॥ वा० ५॥ एहवा अपायापगमनो, अतिशय अति अद्भूत ॥ ॥ मो० ॥अहर्निश सेवा सारता, कोडिगमे सुर हुँत ॥ मो० ॥ वा० ॥ ६॥ मार्ग श्री अरिहन्तनो, आदरीये गुणगेह ॥ मो० चारनिक्षेपे वांदीये, ज्ञानविमल गुण गेह ॥ मो० ॥ वा ॥ ७॥ ॥इति अरिहंत प्रथम पद सज्झाय संपूर्ण ॥
॥सिद्धपदनी सज्झाय ॥ अलबे जो होली हलखेडेरे॥ ए देशी ॥ नमो सिद्धाणं बीजे पदेरे लाल, जेहना गुण छे आठ रे, हुं वारी लाल, शुक्लध्यान अनले करीरे लाल, बाळ्या कर्म कुठाररे ॥ १॥ हुं वारी लाल ॥ ज्ञानावरणीक्षये लह्यारे लाल; केवलज्ञान अनंतरे ॥ हुं० ॥ दर्शनावरणी क्षयथी थयारे लाल, केवलदर्शन करंतरे ॥ ९० न० ॥ २ ॥ अक्षय अनन्त सुख सहजथीरे लाल, वेदनी कर्मनो नाशरे ॥ हुं ॥ मोहनीय क्षये निर्मलुरे लाल, हायक समकित वासरे, हुं० ।