________________
( ३४० ) नवपद विधि विगेर संग्रह ||
॥३॥ रमझमके नेउरी चीर चुनडी नथी सामु गोमुखः चक्केसरी श्री ऋषभशासन हितकार ॥ वंछित फल दे ज्यो सुख संपत्तिदातार; गुरु कुंवरविजयनो रवि लहे
जयकार ॥ ४ ॥
नवपदनी सज्झाय, ( नणदलनी ए देशी. ) वारी जाउं श्री अरिहंतनी, जेहना गुण छे बार ॥ मोहन० ॥ प्रातिहारज आठ छे, मूल अतिशय चार मोहन० ॥ १ ॥ वारि० ॥ वृक्ष अशोक कुसुमनी वृष्टि, दीव्य ध्वनि वाण | मोहन० ॥ चामर, सिंहासन, दुदुभि, भामंडल छत्र वखाण || मो० ॥ वारि० ॥ २ ॥ पूजा अतिशय छे भलो, त्रिभुवन जनने मान ॥ मो० वचनातिशय योजनगामी, समजे भविअसमान ॥ ॥ मो० ॥ वा० ॥ ३ ॥ ज्ञानातिशय अनुत्तरतणा, संशय छेदणहार ॥ मो० ॥ लोकालोक प्रकाशता, केवल ज्ञानभंडार || मो० ॥ वारि० ॥ ४ ॥ रागादिक अन्तररिपु, तेहनो काधो अन्त ॥ मो० ॥ जिहां विचरे जग