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________________ ॥ थोयो॥ शास्त्र शिर मुकुट नगीनो, अंगे सुणो चित्त लाइजी॥ ॥३॥ मातंग यश प्रभु. पद सेवे, उलट आणी अंगेजी, सिरि सिद्धचक्रनी ओली करता, विघ्न हरे मन रंगेजी। हंसविजय गुरु पंडित पुंगव, चरण सरोरुह भुंगजी, धीरविजय बुध मंगलमाला सुख संपत्ति लहे चंगजी ॥४॥ इति ॥ श्री स्तुति. आदीश्वरने पूजो आणी मन उल्लास; सिद्धचक्र आराधो जिम प्होंचे मन आश ॥ आसो चैत्र सातमथी ओलीकीजे सार आंबीलस्युं करता लहीये जय जयकार ॥ १॥ अरिहंत सिद्धादिक आचार्य वलीजेह, उवज्झाय सर्व साधु दर्शन ज्ञानश्युं नेह ॥ चारित्रतप धारो नवपद गुणभंडार; पंचवर्णा जिनवर सेवंता सुखकार ॥२॥ श्रीपालनरेशर मयणा सुंदरी तपसार, उपदेशे श्रीवीरजी परखद बारमझार ॥ श्रेणीकनृप आदे सांभले हरख अपार। आराधो भवि ऋद्धिवृद्धि उदार
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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