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॥ सज्झायो॥
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नमतां शिव सुख थाय, भव भवना पातिक जाय ॥ सू० ॥१॥ पंचाचार पलावताजी आपण पेपालंत ॥ छत्रीशी छत्रीश गुणेजी, अलंकृत तनु विलसन्त ॥ सूरीश्वर ॥ नम० ॥२॥ दर्शन ज्ञान चारित्रनाजी, एकेक आठ आचार ॥ बारहतप आचारनाजी इम छत्रीश उदार ॥ सूरी० ॥ नम० ॥३॥ पडिरूपादिक चउदे अछेजी, वली दशविध यतिधर्म ॥ बारह भा. वना भावतांजी, ए छत्रीशी मर्म ॥ सूरी० ॥ नम० ॥४॥ पंचेन्द्रिय दमे विषयथीजी, धारे नवविध ब्रह्म ॥ पंच महाव्रत पोषताजी, पंचाचारसमर्थ ॥ सूरी० ॥ नम० ॥ ५॥ सुमति गुप्ति शुद्धि धरेजी, टाले चार कषाय ॥ ए छत्रीशी आदरेजी, धन्य धन्य तेहनी माय ॥ सूरी० ॥ नम० ॥ ६ ॥ अप्रमत्ते अर्थ भांखताजी, गणि संपद जे आठ ॥ छत्रीश चउ विनयादिकेजी, इम छत्रीशी पाठ ॥ सूरी० ॥ नमः॥ ॥७॥ गणधर उपमा दीजीएजी, युगप्रधान कहाय ॥ भावचारित्री तेहवाजी, तिहां जिनमार्ग ठराय ॥