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(३२४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ श टालेजी ॥ षट्काया गोकुल रखवाले, नवविध ब्रह्मवत पालेजी ॥ पंच महाव्रत सूधां पाले,धर्म शुक्ल उजवालेजी ॥ क्षपकश्रेणि करी कम खपावे, दमपद गुण उपजावेजी ॥ इति साधुपदस्तुतिः ॥५॥
॥ अथ श्रीदर्शनपद स्तुति ॥ जिनपन्नत्त तत्त सुधा सरधे, समकित गुण उजवालेजी ॥ भेद छेद करी आतम निरखी, पशु टाली सुर पावेजी ॥ प्रत्याख्याने सम तुल्य भाख्यो, गणधर आरिहंत शूराजी ॥ ए दरशनपद नित नित वंदो, भवसागरको तीराजी ॥ इति दशनपदस्तुतिः ॥६॥
॥ अथ श्रीज्ञानपद स्तुति॥ मति श्रुत इंद्रिय जनित कहीए, लहीए गुण गंभीरोजी ॥ आतमधारी गणधर विचारी, द्वादश अंग विस्तारोजी ॥ अवधि मनःपर्यव केवल वली, प्रत्यक्ष रूप अवधारोजी ॥ ए पंच ज्ञानकुं वंदो पूजो, भविजनने सुखकारोजी ॥ इति ज्ञानपदस्तुतिः ॥७॥