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# थोयो ॥
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॥ अथ श्री चारित्रपद स्तुति ॥ कर्म अपच दूर खपावे, आतमध्यान लगावे - जी ॥ बारे भावना सूधी भावे, सागरपार उतारेजी ॥ षट् खंड राजकुं दूर तजीने, चक्री संजम धारेजी ॥ reat चारित्रपद नित वंदो, आतमगुण हितकारेजी इति चारित्र दस्तुतिः ||८||
॥ अथ श्रीतपपद स्तुति ॥
इच्छारोधन तप ते भाख्यो, आगम तेहनो साखीजी ॥ द्रव्य भावसे द्वादश दाखी, जोगसमाधि राखीजी | चेतन निज गुण परणति पेखी, तेहीज तप गुण दाखीजी || लब्धि सकलनो कारण देखी, ईश्वर सेमुस जाखीजी ॥ इति तपपदस्तुतिः ॥ ९ ॥ ॥ सिद्धचक्र स्तुति ॥
वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, गौतम गुणना दरीआ जी ॥ एक दिन आणा वीरनी लेइने. राजगृही संचरीआ जी ॥ श्रेणिक राजा वंदन आव्या, उलट मनमां आणी जी ॥ पर्षदा आगल बार बिराजे, हवे