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नवपद विधि विगेर संग्रह ॥
(कलश) इम सयल सुहकर सयल पुरंदर संस्तव्यो रिसहेश्वरु । तपगच्छ राजेवड दीवाजे विजय जिनेन्द्रसूरीश्वर ॥ तासपसाए स्तवन पभण्यो शिष्यरूप विजयतणो । अढार एकासी आसोपूनम रंगविजय ऊलट घणो ॥ १॥ इतिश्री सिद्धचक्र नवपद वर्णन ऊजमणा फलदायक
स्तवनम् ॥
अथ स्तुतिओ (थोयो.) ॥ अथ श्रीअरिहंतपद स्तुति ॥ सकल द्रव्य पर्याय प्ररूपक, लोकालोक सरूपोजी ॥ केवलज्ञानकी ज्योति प्रकाशक, अनंत गुणे करी पूरोजी ॥ तीजे भव थानक आराधी, गोत्र तीथैकर नरोजी ॥ बार गुणाकर एहवा अरिहंत, आराधो गुण भूरोजी ॥ इति अरिहंतपदस्तुतिः ॥१॥
॥ अथ श्रीसिद्धपद स्तुति ॥ अष्ट करमकुं धमन करीने, गमन कियो शिववासीजी । अव्याबाध सादि अनादि, चिदानंद चिद्