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॥ स्तवनो॥
(२९९) भेदे रे लोय ॥ अहो बा०॥ बांध्यां काल अनंतनां, जे कर्म उन्नेदे रे लोय ॥ अहो जे०॥१०॥ए नव पद बहु मानथी, ध्यावे शुभ भावे रे लोय ॥ अहो ध्या०॥ नृप श्रीपाल तणी परे, मनवंछित पावे रे लोय ॥ अहो म० ॥१॥ आसो चैत्रक मासमां, नव आंबिल करीएरे लोय ॥अहो न०॥ नव ओली विधि युत करी, शिवकमला वरीए रे लोय ॥ अहो शि० ॥ १२ ॥ सिद्धचक्रनी बहु परे, वर महिमा कीजे रे लोय ॥ अहो व०॥ श्री जिनलाभ कहे सदा, अनुपम जस लीजे रे लोय ॥ अहो अ०॥ १३॥ इति ॥
॥ अथ नव पद स्तवन ॥ ॥ राग मारु ॥ तीरथनायक जिनवरुजी, अतिशय जास अनुप ॥ सिद्ध अनन्त महागुणीजी, परमानंद सरूप ॥ भविक मन धारजो रे ॥१॥ धारजो नवपदध्यान ॥ भ० ॥. श्री आचारज गणधरु रे, गुण छत्तीस निवास ॥ पाठक पदधर मुनिवरुजी, श्रुतदायक सुविलास ॥ भ०॥२॥सुमति गुपतिधर शोभ