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नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ताजी, साधु समतावंत ॥ सम्यग्दर्शन सुंदरुजी, ज्ञानप्रकाश यतन्त ॥ भ० ॥ ३ ॥ संवर साधना चरण छे रे तप उत्तम विधि होय ॥ ए नवपदना ध्या नथी रे, निरुपाधिक सुख होय ॥ भ० ||४|| अमृतसम जिनधर्मनो रे, मूल ए नवपद जाण ॥ अविचल अनुभव कारणेजी, नित प्रति नमत कल्याण || भ० ॥ ५॥ इति नवपदस्तवनम् ॥
॥ अथ सिद्धचक्र स्तवन ॥
॥ राग प्रभाती ॥ नवपद ध्यान धरो रे ॥ भविका न० ॥ मन वच काया कर एकते, विकथा दुर हरो रे ॥ ज० न० ॥ १ ॥ मंत्र जमी अरु तंत्र घणेरा, इन सबकुं विसरो रे ॥ अरिहंतादिक नवपद जपने, पुण्य भंडार भरो रे ॥ भ० न० ॥ २ ॥ अड सिद्ध नवनिध मंगलमाला, संपत्ति सहज वरो रे || लालचंद याकी बलिहारी, शिवतरु बीज खरो रे ॥ भ० न० ॥३॥ इति श्रीसिद्धचक्रस्तवनम् ॥