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________________ अथ चैत्यवंदनो॥ (२७१) नेह ॥ १२ ॥ छठे पदे दरसण नमुं, दरशन अजवालुं ॥ ज्ञान पद नमुं सातमे, तेम पाप पखालुं ॥१३॥ आठमे पद रुडे ज. चारित्र सुसंग ॥ नवमे पद बहु तप तपो जिम फल लहो अभंग ॥ १४॥ एही नवपद् ध्यानथी, जपतां नाठे कोड ॥ पंडित धीरविमलतणो, नय वंदे कर जोड ॥ १५॥ इति ॥ - - ॥जिन पूज्यानु चैत्यवंदन. ॥ प्रणमी श्री गुरुराज आज, जिनमंदिर केरो ॥ पुन्य भणी करशुं सफल, जिनवचन भलेरो ॥ देहरे जावा मन करे, चोथ तणुं फल पावे ॥ जिन जुहारवा उठतां, छठ्ठ पोते आवे ।। जइशुं जिनवर भणी ए, मार्ग चालंता ॥ होवे द्वादश तणुं पुन्य, भक्ति मालंता ॥ अध पंथ जिनवर तणो ए, पंदरे उपवास ॥ दीठो स्वामी तणो भुवन, लहीए एक मास ॥ जिनवर पासे आवतां, छमासी फल सिद्ध ॥ आव्या जिनवर बारणे, वर्षी तप फल लीध ॥ सो वर्ष उपवास पुन्य, प्रदक्षिणा देतां ॥ सहस वर्ष उपवास पुन्य, जे नजरे जोतां ॥ फल घणो फूलनी माल, प्रभु कंठे ठवतां ॥ पार न आवे गीत नाद, केरां फल स्थुणतां ।। शिर पूजी पूजा करो ए, सूर धूप तणो धूप ॥ अक्षर सार ते अक्षय, सुख दीप तनुरूप ॥ निर्मल तन मने करीए,
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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