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________________ (२७०) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ॥ सिद्धचक्रजी- चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री सिद्धचक्र आराधतां, सुख संपत्ति लहीए॥ सुरतरु सुररमणी थकी, अधिकज महिमा कहोए ॥१॥ अष्ट कर्म हाणी करी, शिवमंदिर रहीए ॥ विधिशुं नव पध्यानथी, पातिक सवि दमीए ॥२॥ सिद्धचक्र जे सेवशे, एकमना नर नार ॥ मनवांछित फल पामशे, ते सवि त्रिभुवन मोजार ॥ ३॥ अंग देश चंपापुरी, तस केरो भूपाल ॥ मयणा साथे तप तपे, ते कुंवर श्रीपाल ॥ ४ सिद्धचक्रजीना नमन थकी, जस नाठा रोग ॥ तत्क्षण त्यांथी ते लहे, शिवसुख संजोग ॥५॥ सातसें कोढी होता, हुवा निरोगी जेह ॥ सोवन वाने झलहले, जेहनी निरुपम देह ॥ ६॥ तेणे कारण तमे भविजनो, प्रह उठी भक्त ॥ आसो मास चैत्र थकी, आराधो जुगते ॥७॥ सिद्धचक्र त्रण कालना, वंदो वली देव ॥ पडिकमणुंकरी उभय काल जिनवर मुनि सेव ॥८॥ नवपद ध्यान हृदे धरो, प्रतिपालो भवि शाल ॥ नव पद् आंबिल तप तपो, जेम होय लीलम लील ॥९॥ पहेलो पद अरिहंतनो, नित्य कीजे ध्यान ॥ बाँजो पद वली सिद्धनो, करीए गुणग्राम ॥ १० ॥ आचारज त्रीजे पदे, जपतां जयजयकार ॥ चोथो पद उवझायनो, गुण गाउं उदार ॥ ११॥ सरव साधु वंदु सही, अढीद्वीपमा जेह ॥ पंचम पदमां ते सही, धरजो धरी स
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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