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________________ अथ चैत्यवंदनो ॥ ( २६९ ) एणीपरे नव पद भावशुंए, जपतां नव नव कोड; पंडित शांतिविजय तणो, शिष्य कहे करजोड. ६. नवपदनुं चैत्यवंदन. सुललित नवपद् ध्यानथी परमानंद लहीए; ध्यान अग्निथी कर्मना, इंधन पुण दहीए. इति भीति ने रोग शोक, सार्व दूर पणासे; भोग संजोग सुबुद्धिता, प्राप्त सुविलासे. सिद्धचक्र तप कीजतां ए, उत्तम प्रभुता संग; मोहन नाण प्रसिद्धता, गंगारंग तरंग. श्री सिद्ध भगवाननुं चैत्यवंदन. सिद्ध सकळ समरुं सदा, अविचळ अविनाशी: थाशे ने वळी थाय छे, थया अडकर्म विनाशी. लोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो; सिद्ध बुद्ध पारंगत, गुणथी नहीं अधूरो. अनंत सिद्ध एणीपरे नमुं ए, वळी अनंत अरिहंत; ज्ञानविमळ गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत. १ १
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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