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नवपद विधि विगेरे संग्रह ||
स्थूणतां इंद्र जगीश | नाटक भावना भावतां, पामे पदवी जगीश ॥ जिनवरभक्ति वली ए, प्रेमे प्रकाशी ॥ सुणी श्रीगुरु वयण सार, पूर्व ऋषि भाखी ॥ अष्ट कर्मने टालवा, जिनमंदिर जइशुं ॥ भेटी चरण भगवंतना, हवे निर्मल थइशुं ॥ कीर्त्तिविजय उवझायनो, विनय कहे कर जोड | सफल होजो मुज विनति, जिन सेवानुं कोड ॥ इति ॥
॥ चैत्यवंदन ॥
पहले दिन अरिहंतनुं, नित्य कीजे ध्यान । बीजे दिनवली सिद्धनुं, की जे गुणगान ||१|| आचारज श्री जे पदे, जपतां जयजयकार | चौथे पदे उवज्झायना, गुण गावो उदार ||२|| सकल साधु वंदो सही, अढी द्वीपमां जेह | पंचम पद आदर करी, जपजो धरी सनेह ॥ ३ ॥ छड्डे पदे दर्शन नमो, दरिसण अजुआळो । नमो नाणपद सातम, जिम पाप पखाली ||४|| आठमे पद आदर करी, चारित्र सुचंग | नवमे पद बहु तप तणो, फल लीजे अभंग ॥ ५ ॥ एणी परे नवपद भावसुं ए, जगतां नव नव कांड । पंडित 'शांतिविजय' तणो, शिष्य कहे कर जोड ॥६॥
॥ चैत्यवंदन ॥
पहिले पद अरिहंतना, गुण गाउं नित्ये । बजे सिद्ध तणा घणा, समरो एक चित्ते || १ || आचारज श्रीजे पदे,