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( २५८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ ज्वादिक जिनराज गीत, नयतन विस्तारी ॥ भव कूपे पापे पडत, जगजन निस्तारो॥२॥पंचाचारी जीवके, आचारजपद सार॥ तिनकुं बंदे हीर धर्म, अटोत्तरसो वार ॥ ॥ इति आचार्यपदचैत्यवंदनम् ॥ ३॥
॥ अथ चतुर्थ श्रीउपाध्यायपद चैत्यवंदन ॥
॥धन धन श्री उवझाय राय, शठता घन भंजन ॥ जिनवर दिसत दुवालसंग, कर कृत जनरंजन ॥ १॥ गुणवण भंजण मण गयंद, सुय शणि किय गंजण ॥ कुणालंध लोय लोयणे, जत्थ य सुय मंजण ॥२॥ महा प्राणमें जिन लह्यो ए, आगमसे पद तुर्य ॥ तिनपे अहनिश हीर धर्म, बंदे पाठकवर्य ॥३॥ इति उपाध्यायपदचैत्यवंदनम् ॥४॥
॥अथ पंचम श्रीसाधुपद चैत्यवंदन ॥ ॥ दंसण नाण चरित्त करी,वर शिवपद् गामी ॥धर्म शुक्ल शुचि चक्रसे, आदिम खय कामी ॥१॥ गुण पमत्त अपमत्तते, भये अंतरजामी ॥मानस इंदिय दमनभूत, शम दम अभिरामी ॥२॥ चारु तिघन गुण गण भर्यो ए, पंचम पद मुनिराज ॥ तत्पदपंकज नमत है, हीरधर्मके काज ॥३॥ इति साधुपदचैत्यवंदनम् ॥५॥