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________________ स्नात्र पूजानो विवि ॥ (२११) ॥ढाळ ॥ विवाहलानी ॥ सुर सांभलीने संचरीया, मागध वरदामे चलीया ॥ पद्मद्रह गंगा आवे, निर्मल जल कलश भरावे ॥१॥ तीरथ फल औषधि लेता, वली खीरसमुद्रे जाता ॥ जल कलशा बहुल भरावे, फूल चंगेरी थाल लावे ॥२॥ सिंहासन चामर धारी,धूपधाणा रकेबी सारी ॥ सिद्धांत भाख्यां जेह,उपकरण मिलावे तेह॥शाते देवा सुरगिरि आवे, प्रभु देखी आनंद पावे ॥ कलशादिक सहु तिहां ठावे, भक्ते प्रभुना गुण गावे ॥४॥ ॥ढाळ ॥ राग धन्याश्री ॥ आतम भक्ति मळ्या केइ देवा, केता मित्तनुजाइ ॥ नारी प्रेर्या वळी निज कुलवट; धर्मी धर्म सखाइ ॥ जोइस व्यंतर भुवनपतिना, वैमानिक सुर आवे ॥ अच्युतपति हुकमे धरी कळशा, अरिहाने न्हवरावे ॥ आ० ॥१॥ अडजाति कळशा प्रत्येके, आठ आठ सहस प्रमाणो॥ चउस? सहस हुआ अभिषेके, अढीसें गुणा करी जाणो॥साठ लाख उपर एक कोडि, कळशानो अधिकार ॥ बासठ इंद्रतणा तिहा बासठ,
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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