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________________ (२१०) नवपद विधि विगेरे संग्रह ।। ॥ढाळ॥ पूर्वली ॥ एम सांभलीजी, सुरवर कोडि आवी मले ॥ जन्ममहोत्सवजी, करवा मेरु उपर चले ॥ सोहमपतिजी, बहुपरिवारे आवीया ॥ माय जिननेजी, वांदी प्रभुने वधावीया ॥३॥ ॥त्रुटक॥ वधावी बोले हे रत्नकुक्षि-धारिणि ? तुज सुततणो॥ हुं शक्र सोहम नाम करशुं, जन्म उत्सव अति घणो ॥ एम कही जिन प्रतिबिंब थापी, पंच रूपे प्रभु ग्रही॥ देव देवी नाचे हर्ष साथे, सुरगिरि आव्या वही ॥४॥ ढाळ॥ पूर्वली ॥ मेरु ऊपरजी, पांडुकवनमें चिहुं दिशे॥शिला उपरजी सिंहासन मन उससे॥ तिहा बेसीजी, शके जिन खोळे धर्या ॥ हार त्रेशठजी, बीजा तिहां आवी मळ्या ॥५॥ ॥टक ॥ मळ्या चोसठ सुरपति तिहां,करे कलश अड जातिनामागधादि जल तीर्थऔषधि,धूप वली बहुभातिना।। अच्युतपतिए हुकम कीनो, सांभलो देवा सवे॥खीरजलधि गंगानीर लावो, झटिति जनममहोत्सवे।। ६॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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