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________________ स्नात्र पूजानो विधि | ( २०९ ) भरे, अष्ट दर्पण धरे ॥ अष्ट चामर घरे, अष्ट पंखा लही ॥ चार रक्षा करी, चार दीपक ग्रही ॥२॥ घर करी केळां, 'माय सुत लावती ॥ करण शुचिकर्म, जळ, कलशे न्हवरावती ॥ कुसुम पूजी अलंकार पहेरावती ॥ राखडी बांधी जइ, शयन पधरावती ॥३॥ नमिय कहे माय तुज, बाल लीलावती ॥ मेरु रवि चंद्र लगे, जी - वजो जगपति ॥ स्वामिगुण गावती; निज घर जावती ॥ तिण समे इंद्र, सिंहासन कंपती || ४ || || ढाळ || एकवीशानी देशी ॥ जिन जन्म्याजी जिण वेला जननी घरे ॥ तिण वेलाजी इंद्रसिंहासन थरहरे ॥ दाहिणोत्तरजी, जेता जिन जनमे यदा ॥ दिशिनायकजी, सोहम ईशान बेहु तदा ॥१॥ ॥ त्रुटक ॥ तदा चिंते इंद्र मनमां, कोण अवसर ए बन्यो ॥ जिनजन्म अवधिनाणे जाणी, हर्ष आनंद ऊपन्यो ॥१॥ सुघोष आदे घंटनादे, घोषणा सुरमें करे ॥ सवि देवि देवा जन्ममहोत्सवे, आवजो सुरगिरिवरे ॥३॥ ૧૪
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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