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(२०८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ रत्नाकर ११ ।। भवन विमान १२ रत्नगंजी, १३ अग्निशिखा धूमवर्जी १४ ॥३॥ स्वप्न लही जइ रायने भाषे, राजा अर्थ प्रकाशे ॥ पुत्र तीर्थंकर त्रिभुवन नमशे, सकल मनोरथ फळशे ॥४॥
॥ वस्तु छंद ॥ अवधि नाणे अवधि नाणे, उपना जिनराज ॥ जगत जस परमाणुआ, विस्तर्या विश्वजंतु सुखकार ॥ मिथ्यात्व तारा निर्बला,धर्मउदय परभात सुंदर ॥ माता पण आणंदियां, जागती धर्म विधान ॥ जाणंती जगतिलक समो, होशे पुत्र प्रधान ॥१॥
॥दोहा॥ शुभलग्ने जिन जनमिया, नारकीमां सुख ज्योत ॥ सुख पाम्या त्रिभुवन जना, हुओ जगत उद्योत ॥१॥
__॥ढाळ॥ कडखानी देशी ॥ __ सांभळो कळश जन्म, महोत्सवनो इहां ॥छप्पन कुमरी दिशि, विदिशि आवे तिहां ।। माय सुत नमिय आणंद अधिको धरे ॥ अष्ट संवर्त्त, वायुथी कचरो हरे ॥१॥ वृष्टि गंधोदके, अष्ट कुमरी करे ॥ अष्ट कलशा