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(२१२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ।। लोकपालना चार ॥ आ०॥२॥ चंद्रनी पंक्ति छासठ छासठ, रवि श्रेणि नरलोको ॥ गुरुस्थानक सुर केरो एकज, सामानिकनो एको ॥ सोहमपति ईशानपतिनी इंशाणीना सोल ॥ असुरनी दश इंद्राणी नागनी, बार करे कल्लोल ॥ आ० ॥ ३॥ज्योतिष व्यंतर इंद्रनी चउ चउ, पर्षदा त्रणनो एको ॥ कटकपति अंगरक्षक केरो, एक एक सुविवेको ॥ परचूरण सुरनो एक छेल्लो, ए अर्नासें आभिषेको ॥ ईशानइंद्र कहे मुझ आपो, प्रभुने क्षण अतिरेको ॥ आ०॥४॥ तब तस खोळे ठवी अरिहाने, सोहमपति मनरंगे ॥ वृषभरूप करी शृंग जळे भरी, न्हवण करे प्रभु अंगे ॥ पुष्पादिक पूजीने छांटे, करी केसर रंगरोले ॥ मंगब्दीवो आरति करतां, सुरवर जय जय बोले ॥ आ० ॥५॥ भेरी मूंगळ ताल बजावत, वळिया जिन कर धारी ॥ जननीघर माताने सोंपी, एणिपरे वचन उच्चारी॥ पुत्र तुमारो स्वामि हमारो, अम सेवक आधार ॥ पंच धाव्य रंभादिक थापी, प्रभु खेलावण