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स्नात्र पूजानो विधि ॥ (२०३) ॥ पंडितश्रीविरविजयजी कृत स्नात्रपूजा ॥
॥ काव्यं ॥ ॥ द्रुतविलंबितवृत्तम् ॥ सरसशान्तिसुधारससागरं, शुचितरं गुणरत्नमहाकरम् ॥ भविकपंकजबोधदिवाकर प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरम् ॥ १॥
॥दोहा॥ कुसुमाभरण उतारीने, पडिमा धरिय विवेक ॥ मज्जन पीठे थापीने, करीये जल अभिषेक ॥२॥
॥गाथा ॥ आर्या गीति ॥ जिणजम्मसमय मेरु-सिहरांमि रयणकणयकलसेहिं ॥ देवासुरेहिं एहविउ, ते धन्ना जेहिं दिट्ठोसि ॥३॥
॥ कुसुमांजलि ॥ ढाळ ॥ निर्मलजल कलशे न्हवरावे, वस्त्र अमूलक अंग धरावे ॥ कुसुमांजलि म्हलो आदि जिणंदा ॥ सिद्धस्वरूपी अंग पखाली, आतम निर्मळ हुइ सुकुमाळी ॥ कु०॥४॥