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परिशिष्ट (1) हीन सइदखां जो बादशाहका कृपापात्र है, मालूम हो-चूं कि मेरा (बादशाहका) पूर्ण हृदय तमाम जनता य(त)था सारे जानदारों (जीवधारियों) के शांतिके लिये लगा है कि समस्त संसारके निवासी शांति और सुखके पालनमें रहें। इन दिनोंमें ईश्वरभक्त व ईश्वरके विषय मनन कर(ते)ने जिनचंद्रसूरि खरतर भट्टारकको मेरे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसकी ईश्वरभक्ति प्रगट हुई, मैंने उसको बादशाही मिहरवानीयोंसे पूर्ण कर दिया, उसने प्रार्थना की कि इससे पहले ईश्वर-भक्त हीरविजयसूरि तपसाने (हजूरके) मिलनेका सौभाग्य प्राप्त किया था, उसने प्रार्थना की थी कि-हरसाल बारह दिन साम्राज्यमें जीववध न हो और किसी चिडिया या मच्छीके पास न जाय (न सतावे)। उसकी प्रार्थना कृपाकी दृष्टिसे व जीव बचानेकी दृष्टि से स्वीकार हुई थी, अब मैं भी आशा करता हूं कि-मेरे लिये (भी एक) सप्ताह भरके लिये उसी तरहसे (बादशाहका) हुक्म हो जाय । इस लिये हमने पूर्ण दयासे हुक्म किया कि-आषाढ मास के शुक्ल पक्षमें सात दिन जीव वध न हो और न सतानेवाले (गैरमूजी) पशुओंको कोइ न (?) सतावे, उसकी तफ्तील यह है-नवमी दसमी एकादशी द्वादशी त्रयोदशी चतुर्दशी और पूर्णमासी । वास्तवमें बात यह है कि-चूं कि आदमीके लिए ईश्वरने भिन्न भिन्न अच्छे पदार्थ दिए हैं, अतः उसे पशुओंको न सताना चाहिये और अपने पेटको पशुओंकी कब्र न बनाए। कुछ हेतुवश प्राचीन समयके कुछ बुद्धिमान लोगोंने इस प्रथाको चला दिया था। चाहिए कि जैसा उपर लिखा गया है उस पर अमल करे, इसमें कमी न हो, और इसे (हुक्मको) कार्यरूपमें परिणत करने में बहुत सहनशीलतासे काम लें।
उपर लिखी तारीखको लिखा गया। अबुलफजल व वाकयानवीस इब्राहिमवेग ।