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निष्कर्ष
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तर प्रदेश जैन समाज का योगदान ग्रंथ में उ.प्र. के जैन समाज द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में दिये गये योगदान पर प्रकाश डाला गया। जैन समाज ने राष्ट्रीय आन्दोलन के विभिन्न उपक्रमों में अपनी भागीदारी कर स्वतंत्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया। 1919-1947 ई. तक चले राष्ट्रीय आन्दोलन पर महात्मा गाँधी का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। गाँधी जी बचपन से ही जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने जैन आचार-विचार का गहन अध्ययन किया। गाँधी जी ने श्रीमद् रायचंद जैन को अपना गुरू और परममित्र माना तथा उनसे समय-समय पर मार्गदर्शन भी लिया। सम्भवतः इसलिए उनके द्वारा चलाये गये सभी आन्दोलनों में 'अहिंसा' के सिद्धान्त का मुख्य रूप से पालन किया गया और इसी अहिंसा को अस्त्र बनाकर उन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला।
पंजाब केसरी लाला लाजपतराय का जन्म जगराओं (पंजाब) के एक जैन परिवार में हुआ था। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में अहम् भूमिका अदा की और देश पर बलिदान हो गये। इस प्रकार प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं (महात्मा गाँधी, लाला लाजपतराय) की विचारधारा तथा जीवन पर जैन सिद्धान्तों का प्रभाव रहा।
उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रान्त) में जैन समाज की संख्या बहुत कम थी। 1921, 1931, 1941 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में जैन समाज की जनसंख्या क्रमशः, 68, 111 (कुल जनसंख्या की 0.173 प्रतिशत), 67,954 (कुल जनसंख्या की 0.167 प्रतिशत) तथा 103029 (कुल जनसंख्या की 0.183 प्रतिशत) थी। उत्तर प्रदेश के 17-18 जिलों में मुख्य रूप से जैन समाज का निवास था। इन जिलों में मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलन्दशहर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, एटा, मैनपुरी, मुरादाबाद, इटावा, झाँसी, सहारनपुर, बिजनौर, इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर, देहरादून और बनारस जिले उल्लेखनीय हैं।
उत्तर प्रदेश के जैन समाज ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास में भी अपना योगदान दिया। नजीबाबाद (बिजनौर) के साहू शांतिप्रसाद जैन, साहू श्रेयांसप्रसाद जैन आदि ने उत्तर प्रदेश के साथ ही दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, राजस्थान आदि प्रान्तों में विभिन्न उद्योग
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