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ने भी इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल की यात्रा की ।
झाँसी जिले में 'अगस्त क्रांति' के प्रारम्भ होते ही कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध जमकर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया । गली-गली मे 'इंकलाब जिन्दाबाद', 'भारत माता की जय', 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' के नारे गूंज उठे। वर्तमान का ललितपुर जिला उस समय झांसी जिले में ही स्थित था ।
झाँसी के जैन समाज ने इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया । हुकुमचंद जैन ( बुखारिया, ' तन्मय' ) व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय से ही सक्रिय हो गये थे । 1941 में उन्होंने 6 माह की सख्त सजा भोगी थी। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान श्री जैन ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके एक वर्ष की कठोर कैद तथा 100 रुपये जुर्माने की सजा दी। जेल में रहकर उन्होंने देश भक्ति से ओतप्रोत काव्य रचनाओं का सृजन प्रारम्भ कर दिया । इन काव्य रचनाओं को जिनके शीर्षक 'आग' 'आहुति' और 'पाकिस्तान' रखे गये थे, बाद में प्रकाशित भी किया गया । उत्तमचंद जैन कठरया पुत्र मुरलीधर जैन ने इस आन्दोलन के दौरान निकाले जा रहे जुलूस में मुख्य भूमिका निभाई । श्री जैन जुलूस के प्रारम्भ में तिरंगा झंडा हाथ में लिये चल रहे थे । सरकार ने उन्हें 29 अगस्त 1942 को धारा 38 डी. आई. आर. के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 1 साल का कारावास और 100 रुपये का जुर्माना भुगतना पड़ा 189
सुखलाल जैन ने इस आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। परिणाम स्वरूप श्री जैन को 1 साल कैद तथा 100 रुपये का आर्थिक दण्ड दिया गया ।" धन्नालाल जैन 'गुढ़ा ' पुत्र मूलचन्द जैन निवासी ललितपुर ने इस आन्दोलन के दौरान विद्रोहात्मक गतिविधियों में भाग लेकर शासन के सिर में दर्द कर दिया। हड़ताल करवाने में भी उन्होंने अग्रणीय भूमिका निभाई । सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और एक वर्ष कैद एवं 100 रुपये जुर्माने की सजा दी । "
प्रभुदास जैन के पुत्र रामचन्द्र जैन ने यह विचार करके कि देश का अस्तित्व परिवार के अस्तित्व से बहुत अधिक है । इस आन्दोलन में क्रांतिकारियों के साथ कार्य करना शुरू कर दिया। सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए काफी प्रयत्न किये, परन्तु श्री जैन सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने में लगे रहे, अंत में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया । उन्हें 1 वर्ष कठोर कारावास तथा 100 रुपये जुर्माने की सजा दी गयी।” शिखरचंद जैन 'सिंघई' को धारा 144 तोड़ने पर 6 माह की सजा और 50 रुपये का जुर्माना भुगतना पड़ा। सूचना विभाग के अनुसार उन्हें भारत प्रतिरक्षा कानून की 38वीं धारा के अंतर्गत 29 अगस्त, 1942 को यह सजा हुई थी । बाबूलाल जैन ने इस आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया । उन्हें 1 वर्ष कैद और 100 रुपये जुर्माने की सजा दी गई 13
भारत छोड़ो आन्दोलन में जैन समाज का योगदान :: 139