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________________ चर्चा, बाजार में हिंसा की चर्चा, ऐसा लगता है जैसे सारा वातावरण हिंसा के प्रकम्पनों से प्रभावित हो रहा है। ___आज हिंसा के साधक तत्त्व ज्यादा हैं। काम, क्रोध, लोभ, भय, संदेह ये सब हिंसा के साधक तत्त्व हैं। हिंसा का एक मात्र बाधक तत्त्व है अध्यात्म। आत्मा का ज्ञान, आत्मानुभूति, समानानुभूति उस पर हमारा ध्यान कम जाता है। साधक तत्त्व चारों ओर बिखरे पड़े हैं। इस चिंतन के आलोक में हिंसा उपरति का तत्त्व समझा जा सकता है। ___ पदयात्रा महाप्रज्ञ का जीवन व्रत था। अनसंचरण के दौरान हई तथ्यानभति को शब्दों में तब्दील करते हुए उन्होंने बताया-गाँव-गाँव की पदयात्रा के दौरान आम जन से मिलने से मुझे अहसास हुआ कि वेरोजगारी एवं गरीवी की समस्या दूर नहीं होने तक हिंसा का समाधान नहीं हो सकता। सामाजिक एवं आर्थिक कारणों के साथ-साथ मन के भीतर भी हिंसा के कारण हैं। अच्छे धनवान एवं समृद्ध व्यक्ति भी हिंसक अपराध करते हैं। गरीबी की अपेक्षा अमीरी ज्यादा बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण मन के अंदर होने वाला आवेश है। आवेश के चलते लड़ाई-झगड़े व अशांति के वातावरण में विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। जब व्यक्ति के पास खाने को रोटी नहीं रहता ह तो वह अपराध की ओर अग्रसर होता है। एतद् रूप हिंसा के कारणों को समझे बिना अहिंसा को समझना कठिन है। इसकी पुष्टि में उन्होंने बताया-समस्या को मिटाने के लिए समस्या की जड़ तक पहुंचना होगा। आज जो हिंसा हो रही है उसके कारणों को खोजा जाए तो पता चलेगा कि हिंसा होने का मूल कारण है बेरोजगारी। हिंसा के उदभव के लिए दो बातें जिम्मेदार है धन का अभाव और धन का प्रभाव। जिस दिन हिन्दस्तान में कोई आदमी रोटी के लिए मोहताज नहीं होगा, सबको काम मिलेगा, काम के अनुपात में वेतन मिलेगा और मुफ्तखोरी की भावना नहीं रहेगी, उस दिन हिंसा भी अदृश्य हो जाएगी। यह यथार्थ का चित्रांकन है। इस बात को बलपूर्वक कहा कि हिंसा से समाज में समरसता नहीं आ सकती। कुछ लोग हिंसा से सामाजिक विषमता की खाई को पाटना चाहते हैं। उग्रवादी हिंसा उसी विचार की उपज है। आचार्य महाप्रज्ञ ने उग्रवादियों को एक संदेश में कहा था कि कुछ लोगों को मारने से समाजव्यवस्था नहीं बदल सकती। कुछ आदमियों को मार दिया गया या धन ऐंठ लिया गया इससे समाज व्यवस्था नहीं बदल सकती। आतंकवाद से भय फैल सकता है पर समाज नहीं बदल सकता। उससे घृणा फैलती है। इस संदेश में समुचित समाधान की प्रतिध्वनि है जो समाज की हर इकाई को सोचने के लिए प्रेरित करती है। अहिंसा को गतिशील बनाने में अहंभूमिका रखने वाले तथ्यों की अभिनव खोज 'हिंमा के व्यापक कारणों की' आचार्य महाप्रज्ञ की सर्वथा मौलिक है। जो उन्हें महान् अहिंसा प्रणेता सावित करती है। अहिंसा अर्थ-स्वरूप विमर्श आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा अर्थ, स्वरूप और प्रयोग की दृष्टि से विशाल है। विशालता का हेतु है आगमोक्त आहसा का मंथन, पूर्व के मनीषियों के विचारों का स्वीकरण और स्वानुभूति के आलोक नये-नये प्रयोगों का समाचरण एवं उनकी प्रस्थापना। उनके शब्दों में अहिंसा का सिद्धांत बहुत व्यापक है। इसका दर्शन बहुत बड़ा दर्शन है। लोग अहिंसा को केवल ‘मत मारो' तक ही सीमित कर देते 96 / अंधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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