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________________ हिंसा के कारणों की खोज में उन्होंने बतलाया कि 'नेगेटिव थिंकिंग हिंसा का बहुत बड़ा कारण है । घृणा, ईर्ष्या, भय, कामवासना - ये निषेधात्मक दृष्टिकोण हैं ।' ये हिंसा के अदृश्य रूप भले ही हैं पर इनका प्रभाव कम नहीं 1 जिस व्यक्ति का आहार शुद्ध नहीं होता, उसका चिंतन कभी शुद्ध नहीं हो सकता, सात्विक नहीं हो सकता। उसमें उतेजना, आवेश, भय, हिंसा आदि अप्रशस्त विचार आते रहेंगे। जो वैचारिक हिंसा के जनक है। वैचारिक हिंसा भयंकर है उसको मिटाने के तीव्र प्रयत्न जरूरी है। कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़े कियें । आदमी हिंसक क्यों बनता है? अपराध की गली में प्रवेश क्यों करता है? वे कौनसी परिस्थितियां है जो आदमी को हिंसा के लिए प्रेरित करती है ? इत्यादि प्रश्नों के संदर्भ में हिंसा और अपराध वृद्धि कारणों की मीमांसा की । प्रस्तुत कृति में हिंसा के विभिन्न कारणों की चर्चा प्रसंगतः की गई है। पर प्रस्तुत संदर्भ में महाप्रज्ञ के द्वारा निर्दिष्ट सूत्ररूप में हिंसा जनक कारणों का उल्लेख प्रासंगिक होगा • पारिवारिक शांत सहवास का अभाव । 1 भूख और गरीवी - भूखा आदमी, चोर-लुटेरा, कातिल, आतंकवादी कुछ भी बन सकता है धर्म की आड़ में जातीय और साम्प्रदायिक दंगे । आवेग या इमोशन की प्रबलता । आवेश हिंसा का प्रमुख कारण है। आवेश से अविष्ट आदमी निरपराध की हत्या करता है, आक्रमण करता है और प्रतिशोध की अग्नि को प्रज्वलित करता है। परिणामतः तनाव में चला जाता है । निरंतर तनाव का जीवन जीने वाला व्यक्ति हिंसा में प्रवृत होता है। तनाव से अंतःस्त्रावी ग्रंथि तंत्र एवं नाड़ी तंत्र विकृत होता है, उससे हिंसा का जन्म होता है। तनाव, हिंसा एवं स्वास्थ्य का गहरा संबंध है। 199 जाहिर है महाप्रज्ञ ने हिंसा को व्यापक क्षेत्र में प्रस्तुति देकर जिज्ञासु का ध्यान केन्द्रित किया है। हिंसा को नहीं चाहते फिर भी उसका विकास हो रहा है। अहिंसा को चाहते है फिर भी उसका विकास बाधित है। इस पहेली को कैसे सुलझाया जाए? हिंसा विकास और अहिंसा के विकास में विघ्न उपस्थित हो रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ ने सात प्रमुख विघ्नों का उल्लेख किया है1. हिंसा का संस्कार 2. कर्म संस्कार या जीन 3. परिस्थिति या वातावरण 4. शरीरगत रसायन 5. अनास्था 6. अप्रयत्न 7. प्रशिक्षण और अनुसंधान की कमी | 2010 हिंसा के कारणभृत, अहिंसा विकास के विघ्नों का बारीकी से, मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादन किया गया है। इस संदर्भ में हिंसा वृद्धि के तथ्यों का आकलन जरूरी है। जीनवाद, मौलिक मनोवृत्तिवाद, परिवंशवाद और कर्मवाद इन चारों के समन्वय और समवाय से निष्कर्ष निकलता है कि सर्वाधिक ध्यान देने योग्य घटक हे परिवेशवाद। एक बच्चे को सिनेमा, टी.वी., समाचार पत्र आदि के जरिये हिंसा को उत्तेजना देने वाले नाना दृश्य देखने, पढ़ने और सुनने को मिलते हैं, क्या उसके बारे में कल्पना की जा सकती है कि वह अहिंसा का विकास करेगा। इस तथ्य को सामयिक प्रस्तुति देते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने लिखा- हिंसा क्यों बढ़ रही है? आंतक क्यों बढ़ रहा है? अगर कारण खोजा तां बहुत साफ है कि मनुष्य को जितनी हिंसा की घटनाएं, चर्चाएं और वार्ताएं सुनने को मिलती हैं उसकी तुलना में अहिंसा का एक अंश भी देखने-सुनने को नहीं मिलता। जाए वर्तमान में चारों ओर हिंसा के स्वर प्रबलता से सुनाई दे रहे हैं। संचार माध्यमों में हिंसा की आचार्य महाप्रज्ञ का अहिंसा में योगदान / 95
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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