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________________ स्वतंत्र और उन्नत होने के लिए एक ही मार्ग उन्नत और श्रेष्ठ था वह था सत्य और अहिंसा। गांधी अपने विश्वास को प्रकट करते मैं अहिंसा की दुहाई इसलिए देता हूं कि मैं जानता हूँ अकेले उसी के बल पर ही मनुष्य जाति सर्वश्रेष्ठ श्रेय को पहुंचती है-अगले जन्म में ही नहीं इस जन्म में भी। मैं हिंसा पर आक्षेप इसलिए करता हूँ कि जब उससे हित होता हुआ दिखायी देता है तब तो वह अस्थायी होता है, पर उससे जो बुराई होती है वह स्थायी होती है। मैं नहीं मानता कि एक भी अंग्रेज का खून करने से भारतवर्ष का जरा भी लाभ होगा। देश की आजादी का अंतरंग माहौल बनाने के लिए व्यक्ति-व्यक्ति में अहिंसा की निष्ठा पैदा करने के लिए गांधी ने रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। भारत गाँवों का देश है इसका प्रत्येक गाँव आत्म निर्भर बनें यह रचनात्मक कार्यक्रम का उद्देश्य था। जन चेतना जागृति हेतु उन्होंने गाँवों की यात्राएँ की, यद्यपि अंग्रेज इस बात से वाकीफ थे कि गांधी बड़ा चालाक व्यक्ति है और वह अहिंसा की आड़ में आजादी की तैयारी कर रहा है। पर गांधी का विशुद्ध लक्ष्य था अहिंसक चेतना का जागरण। रचनात्मक कार्य और अहिंसा के बीच तादात्म्य संबंध को जोड़ते हुए हिन्दू-मुस्लिम एकता, सर्वधर्म समन्वय, अस्पृश्यता निराकरण आदि कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। 1920 से चरखे का संबंध अहिंसा और स्वतंत्रता के साथ जोड़ा। आजादी का मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाते हुए दांडी कूच के समय उन्होंने पूर्ण स्वराज्य की अपनी माँग को कम करके सिर्फ ग्यारह माँगों का प्रस्ताव रखा। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि ये मांगें पूरी होगी तो आजादी हमारा दरवाजा खटखटाने लगेगी। आजादी के चक्रव्यूह को अनेक तरह से निर्मित करते हुए अहिंसक व्यक्तित्व निर्माण का दुरूह कार्य अपने हाथों में लिया। उनका यह विश्वास था कि एक भी व्यक्ति में अहिंसा का पर्याप्त विकास हो गया, तो वह अपने क्षेत्र में हिंसा के बहुत व्यापक और उग्र रूप का भी मुकाबला करने का साधन ढूँढ़ सकता है। आजादी के संघर्ष में अनेक अहिंसक आंदोलन अपनाये गये। अनेक बार गांधी ने आत्मशद्धि हेतु उपवास किये। अनेक बार प्रमुख नेताओं सहित गांधी जेल में कैदी बनाये गये। इन प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद गांधी का अहिंसा मंत्र कभी मंद न हुआ वे प्रत्येक घटना को अहिंसा व धैर्य पूर्वक झेलते रहे। इस तथ्य को समझने हेतु एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। 'भारत छोड़ो' आंदोलन के तहत गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार पटेल आदि कांग्रेस की कार्य-समिति के सदस्यों को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया तब गाड़ी में जवाहरलाल ने गांधी से प्रश्न किया-'अहिंसा में गुप्त नीति को स्थान है? उत्तर था 'नहीं।' मेरी सरदारी पूरी हुई। अब जिसे जो ठीक लगे सो करे। इतना जरूर है कि अहिंसा की चारदीवारी में रहकर जो लोग वाहर हैं, वे अपनी मति के अनुसार चलते रहें। मैं समझता हूँ कि तोड़-फोड़ का तरीका हमारे लिए नहीं है। अहिंसा के नाम पर यह सब चले तो ठीक नहीं।' जाहिर है उन्होंने छिपी नीति का कभी समर्थन नहीं किया और एक समय ऐसा भी आया जब गांधी को लगा कि कांग्रेस-समिति और मेरी नीति में फर्क आ रहा है तब उन्होंने समिति से अपना संबंध विच्छेद की घोषणा इस मंतव्य के साथ की-मेरे लिए तो अहिंसा धर्म है। मुझे उस पर अमल करना ही है, भले ही मैं अकेला रह जाऊँ। अहिंसा का प्रचार मेरे जीवन का ध्येय है, सो मुझे हर एक परिस्थिति में उसके पीछे लगे ही रहना है। __मैंने देखा कि आज ईश्वर और मनुष्य के सामने मेरी श्रद्धा की परीक्षा का मौका है इसलिए कमेटी के कार्य की जिम्मेदारी से मैंने मुक्ति मांगी। आज तक कांग्रेस की नीति के संचालन की 88 / अंधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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