SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के गौरव का प्रश्न था तो दूसरी तरफ अहिंसक लड़ाई के जरिये आजादी हासिल कर दुनिया के समक्ष एक मिसाल पेश करने की हार्दिक तमन्ना। इसी आशय से गांधी ने कहा था-'हिन्दुस्तान के पास इन मुल्कों को भेजने के लिए सिवाय अहिंसा के और कुछ नहीं है। लेकिन जैसा कि मैं कह चुका हूँ, यह अभी तक भेजने के लायक चीज नहीं हुई है; वह ऐसी तब होगी, जब हिन्दुस्तान अहिंसा के जरिये आजादी कर लेगा।184 अहिंसा से ही आजादी तय हो उसके पीछे उनकी मानसिकता यह भी थी कि सबसे कमजोर और छोटे मनुष्य के लिए भी स्वतंत्रता सुरक्षित रहे और यह तभी संभव है जब अहिंसा से हम स्वतंत्रता प्राप्त करें। गांधी का यह स्पष्ट अभिमत रहा कि 'अहिंसा को केवल नीति के बजाय एक जीवित शक्ति याने अटूट ध्येय के रूप में स्वीकार न कर लिया जाय, तब तक मुझ जैसों के लिए, जो अहिंसा के हामी हैं, वैधानिक और लोकतंत्रीय शासन का दूर का स्वप्न ही है। जबकि मैं विश्वव्यापी अहिंसा का हामी हूँ, मेरा प्रयोग हिन्दुस्तान तक ही सीमित है। यहाँ उसे सफलता मिली, तो संसार बिना किसी प्रयत्न के उसे स्वीकार कर लेगा। गांधी के इस विचार को समर्थन मिला। भारत के स्वराज्य और भारत के भविष्य के संबंध में गांधी की दृष्टि तात्कालिक ही नहीं, वह दूर-दृष्टि थी। उस दूरदर्शिता को श्रद्धा के आधार पर ही थामे रखा जा सकता है। चूँकि अंग्रेजों की मानसिकता बदले इस हेतु गांधी ने सहयोगात्मक रवैया भी अपनाया पर उसके जो परिणाम निकले वे बड़े निराशा जनक थे। गांधी ने स्वीकारा-पिछली लडाई में हिन्दस्तान की ओर से सर्वाधिक सहायता मिलने के बावजद ब्रिटेन की वृत्ति रोलट एक्ट और ऐसे ही रूपों में प्रकट हुई। अंग्रेजी रूपी खतरे का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने असहयोग को स्वीकार किया। जलियांवाला बाग, साइमन कमीशन, गोलमेज कांफ्रेस और थोड़े-से लोगों की शयरत के लिए सारे बंगाल को कुचलना ये अंग्रेजी सरकार के वे कारनामे थे जिनसे भारतीय जनता का धैर्य टूटता नजर आया। आजादी के अहिंसक आंदोलन में दूषित भावों का समावेश करने की मंशा का उदाहरण है कि लोकमान्य तिलक का कहना था कि स्वाधीनता आंदोलन में थोड़ी हिंसा हुई तो हर्ज नहीं, देश का कल्याण होना चाहिए। पर बापू इससे कभी सहमत नहीं हुए। उनका मानना था कि अहिंसा से ही देश का कल्याण हो सकता है और वे इस सिद्धांत पर डटे रहे। उनके समक्ष चुनौतीपूर्ण विचार थे कि दक्षिण अफ्रीका में बहुसंख्यक परदेशी लोगों के बीच आपकी अहिंसा चल सकती थी वहां अहिंसा ठीक थी, परन्तु भारत जैसे विशाल देश में अंग्रेजों का राज्य हटाने के लिये सब तरह के साधन काम में आ सकते हैं। अतः अहिंसा-हिंसा दोनों से काम करें। कोई माडरेट भी हो, कोई एक्स्ट्रीमिस्ट भी हो, और क्रांतिकारी भी हो, गांधी ने ऐसे अनेकशः विचारों का प्रतिकार करते हुए कहा था-जो भारत की सशस्त्र रक्षा की आवश्यकता में विश्वास करते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि गत बीस वर्ष यों ही चले गये, कांग्रेसवादियों ने निशस्त्र युद्ध विज्ञान सीखने के प्राथमिक कर्तव्य के प्रति भारी उपेक्षा दिखायी और कहा मुझे भय है कि इतिहास मुझे ही लड़ाई के सेनापति के रूप में दुःखजनक बात के लिए जिम्मेवार ठहरायेगा। भविष्य का इतिहास कहेगा कि यह तो मुझे पहले ही देख लेना चाहिये था कि राष्ट्र बलवान की अहिंसा नहीं बल्कि केवल निर्बल का अहिंसात्मक निष्क्रिय प्रतिरोध सीख रहा है और इसलिये, इतिहासकार के कथनानुसार, कांग्रेसजनों के लिए सैनिक शिक्षा मुझे मुहैया कर देनी चाहिए थी। उनके इस आत्म निवेदन से स्पष्ट है कि स्वराज बापू की दृष्टि में कीमती चीज जरूर था मगर अन्तिम आदर्श की चीज वह नहीं थी। महात्मा गांधी का अहिंसा में योगदान / 87
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy