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________________ काट-छांट करना । जो इच्छा पैदा हो उसे उसी रूप में स्वीकार न करना, किंतु उसका परिष्कार करना । आज की प्रमुख समस्या है उपभोक्तावादी मनोवृत्ति । पर्यावरण का पहला सूत्र है - पदार्थ कम है इसलिए प्रयोग कम करो । आज उपभोक्तावाद बढ़ रहा है, उपभोगवाद बढ़ रहा है। वह मनुष्य की वृत्तियों को उभार रहा है, मनुष्य को आक्रामक बना रहा है। इस स्थिति से निजात पाने के लिए सभी उत्सुक हैं। पर यह कैसे संभव है पर्यावरण का प्रदूषण भी न रहे, उपभोक्तावाद भी बढ़ता रहे और विश्व शांति की चर्चा भी करते रहे। इस विरोधाभासी दृष्टिकोण के पलते समस्या घटती नहीं, बढ़ती ही जाती है । पर्यावरण विज्ञान आज किसी एक व्यक्ति, समूह, समाज, राज्य या राष्ट्र तक सीमित नहीं है इसका संबंध पूरे विश्व से जुड़ा हुआ है। यह पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है। इसकी अपनी प्रविधि है, प्रक्रिया और सिद्धांत भी हैं। इसके प्रमुख सिद्धांत निम्न हैं • • जीव और पदार्थ एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। भौतिक वातावरण जीवों पर और जीव भौतिक वातावरण पर आश्रित है । एक कड़ी का परिवर्तन शेष कड़ियों में परिवर्तन ला देता है । भूमि, पानी, हवा, ईंधन ये सब इस अखिल जगत् की कड़ियां हैं। एक निश्चित तापमान में ही जीव जी सकता है। आज एक खतरा पैदा हो गया। ओजोन की परत टूटती जा रही है । यदि पराबैंगनी किरणें सीधी धरती पर पड़नी शुरू हो गई तो जीव का जीवित रहना मुश्किल है। तापमान से जलस्तर इतना बढ़ जायेगा कि बड़ेबड़े नगर समुद्र बन जाएंगे। प्रकृति का संतुलन न बिगड़े कोई भी तत्त्व असंतुलन की अवस्था को प्राप्त न हो जाए। 140 पर्यावरण विज्ञान के ये सिद्धांत महावीर वाणी का पुनरुच्चारण है । सिद्धांतों के संदर्भ में अहिंसा पर चिंतन करें तो अहिंसा का भी यही सिद्धांत है। अकेला कोई नहीं जी सकता। एक शाश्वत नियम बना 'द्रव्य निमित्त हि संसारिणां वीर्यमुपजायते' - हमारी सारी वीर्य शक्ति द्रव्य के निमित्त से पैदा होती है, पर्यावरण के निमित्त से पैदा होती है । यदि पर्यावरण बिगड़ गया तो हमारा सारा वीर्य समाप्त हो जायगा । सचमुच पर्यावरण विज्ञान का अध्ययन अहिंसा विज्ञान का अध्ययन है । सरल शब्दों में) पर्यावरण का प्रदूषण हिंसा है। पर्यावरण का संतुलन रहेगा तो मनुष्य भी जीयेगा, पशु-पक्षी भी जीएंगे, भौतिक वातावरण भी शुद्ध रहेगा। सभी प्राणी मिलकर जीते हैं तो वातावरण शुद्ध रहता है, पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता । पर्यावरण के संतुलन में सबका योग है । मकड़ी बहुत सारे विषैले कीटाणुओं को नष्ट कर देती है । आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया- 'जितने जीव हैं, पदार्थ हैं, वे सब प्रकृति के संतुलन को बनाए हुए हैं। संतुलन का एक व्यवस्थित क्रम बना हुआ है। मनुष्य ने हस्तक्षेप किया और सबको नष्ट करना शुरू कर दिया। इसका अर्थ है, मनुष्य ने पर्यावरण को प्रदूषित करने का जिम्मा ले लिया । वास्तव में देखा जाये तो प्रदूषण का मूल कारण मनुष्य है । पर्यावरण की समस्या अनर्थहिंसा से उपजी समस्या है। प्राचीन काल में कहा गया-पन्द्रह कर्मादान का त्याग करो । श्रावकों के लिए ऐसी आचार संहिता निर्मित की गयी जो निग्रह प्रधान थी । यह आंदोलन भी चला - बड़े कारखाने मत खोलो, लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दो । बड़े-बड़े कारखाने बहुत खतरे का कारण बनेंगे। महात्मा गांधी ने विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था और विकेन्द्रित शासन सत्ता पर बल दिया, वह कर्मादान-निषेध या पर्यावरण- विज्ञान का महत्त्वपूर्ण फार्मूला बन सकता है। 70 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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