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________________ अर्थ हिंसा अनर्थ हिंसा अहिंसा के क्षेत्र में 'अल्प हिंसा करो' ऐसा निर्देश नहीं मिलता। भगवान महावीर ने हिंसा के दो विभाग किये हैं-अर्थ हिंसा अनर्थ हिंसा। आशय स्वरूप अनर्थ हिंसा से अवश्य बचो। अर्थ हिंसा से जिस अंश तक बचना संभव हो बचो। इसका संवादी महात्मा गांधी का कथन-'हिंसा करने से जिस अंश तक बचना संभव हो उस अंश तक बचना सबका धर्म है। 108 इस प्रकार अर्थ और अनर्थ हिंसा का संबंध जीवन की अनिवार्यता एवं सुविधा भोग से जुड़ा हुआ है। अतः जिसके बिना जीवन चल ही न सके ऐसी अवस्था का विकल्प अर्थ हिंसा में निहित है पर अनर्थ से जितना हो सके बचना महत्त्वपूर्ण है। पारमार्थिक एवं व्यावहारिक अहिंसा अहिंसा की सूक्ष्म समझ हेतु विभिन्न भेदों का ज्ञान आवश्यक है। पारमार्थिक अहिंसा, वास्तविक अहिंसा से प्रभावित नहीं होगी तब तक समाज में चल रही हिंसा को कम नहीं किया जा सकता। पारमार्थिक अहिंसा क्या है? वास्तविक अहिंसा क्या है? महाप्रज्ञ के शब्दों में-'पारमार्थिक अहिंसा का आधार है आत्मा। सब आत्माओं की समानता, जैसी मेरी आत्मा है वैसी ही अन्य प्राणी की आत्मा। न केवल मनुष्य की आत्मा पर हर प्राणी की आत्मा वैसी है जैसी की मेरी। यह आत्मा की समानता का सिद्धांत ही पारमार्थिक अहिंसा का आधार है। जैसी सुख-दुःख की अनुभूति मेरी है वैसी ही सब प्राणियों की है।' इस चेतनानुभूति से भावित आत्मा का प्रशस्त चिंतन बनता है-मुझे किसी भी प्राणी को दुःख नहीं देना चाहिए, सताना नहीं चाहिए, किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए और किसी को मारना नहीं चाहिए। इस अनुभूति के अभाव में पारमार्थिक अहिंसा का विकास असंभव है। जब तक उस अहिंसा का विकास नहीं होता तब तक समाज में जो विषमता छीनाझपटी. लट-खसौट. मार-धाड. चल रही है. एक दसरे पर प्रहार और कष्ट देने का व्यवहार चल रहा है उसे न बंद किया जा सकता है न ही कम किया जा सकता है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न है पारमार्थिक अहिंसा के विकास का? इसे कैसे विकसित किया जाये? आचार्य महाप्रज्ञ का मंतव्य है- 'पारमार्थिक अहिंसा की खोज वैज्ञानिक उपकरणों के आधार पर नहीं हो सकती, इतिहास के आधार पर भी नहीं हो सकती। वह हो सकती है अपनी अन्तरात्मा के अनुसंधान से। मैं क्या हूं? मेरे भीतर क्या है?' इस अंतर दिशा का अवलोकन करने वाला उभरने वाली वृत्तियों को जान लेता है, उसके लिए यह रहस्य नहीं रह पाता कि कौन-कौनसी वृत्तियां हिंसा को उभार रही हैं। क्या इन वृत्तियों का शमन किया जा सकता है? जब तक आध्यात्मिक विश्लेषण नहीं होगा समस्या बनी रहेगी। हिंसा और अहिंसा का प्रश्न हमारे अंतःकरण से जुड़ा हुआ है तो बाहर से भी जुड़ा हुआ है। जहाँ स्वार्थ, लोभ, उपयोगिता का प्रश्न प्रबल होता है वहाँ अप्रिय घटनाएं घटित होती हैं। आज सारे समाज की जीवन शैली व्यावहारिक अहिंसा से प्रभावित जीवन शैली है। इसलिए जब कभी हिंसा भड़क उठती है, समाज, जाति, संप्रदाय एवं परिवार में जहां तहां हिंसा की चिनगारियाँ उछलती नजर आती है। हमारी जीवन शैली जब तक व्यावहारिक अहिंसा से प्रभावित रहेगी तब तक ऐसा होता रहेगा।109 तथ्यतः जिस दिन व्यावहारिक अहिंसा और पारमार्थिक अहिंसा-इन दोनों 58 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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