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________________ प्रयत्नों का आकलन करते हुए 'राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भावना प्रतिष्ठा' द्वारा 'राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भावना' पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा-'आचार्य महाप्रज्ञ ने साम्प्रदायिक सौहार्द और सद्भावना के लिए हमारे देश में बहुत बड़ा काम किया। इस कार्य हेतु सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर दिया। आचार्य महाप्रज्ञ ने न केवल अपने साहित्य के द्वारा, अपितु अपने आचरण के द्वारा इस दिशा में एक अत्यन्त सुन्दर प्रयत्न किया है। वे साम्प्रदायिक सद्भावना के निष्ठाशील व्याख्याता हैं और उसी साधना में लगे हुए हैं। अपने विपुल साहित्य के द्वारा तथा समन्वय सम्मेलनों के द्वारा विभिन्न धर्मों के बीच एकता को संपुष्ट करने के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अवदान दिया। हजारों लोगों की चेतना को जागृत किया है तथा अन्य धर्मों के प्रति समादर रखने के लिए अभिप्रेरित किया है।' सद्भावना पुरस्कार पाना उनके लिए कोई खुशी का प्रसंग नहीं बना अपितु इसकी बाधा का हृदयस्पर्शी शब्दों में चित्रण करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-एक दिन ऐसा आए कि हम गर्व के साथ कहें-हिन्दुस्तान एक ऐसा देश है, जहाँ कोई भी आदमी भूखा नहीं है। यहाँ कोई भूखा नहीं सोता। भूख से सोने वालों की जो कठिनाइयां हैं, वे हमने देखी हैं। पद यात्रा के दौरान हम जनजातियों के बीच रहे, उनके घरों में रहे, गरीबों के घरों में रहे। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान की आदिवासी पट्टियों की यात्रा में हमने उनकी स्थिति को देखा तो मन में आया कि आदमी भूखा है और हम बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं। दोनों में विसंगति है। मैं चाहता हूँ कि सद्भावना पुरस्कार का एक अर्थ आगे बढ़े जन जातीय पुरस्कार, जिसमें ऐसी स्थिति का निर्माण कर सकें और गौरव के साथ कह सकें हम सब लोग कम से कम जीवन की प्राथमिक आवश्यकता को पूरा करने में समर्थ हैं। ऐसे प्रयत्न का मैं समर्थन करता हूं।120 इसमें विराट् सद्भावना का निदर्शन है जो उनके उत्कृष्ट मानवता प्रेम को प्रकट करता है। साम्प्रदायिक समस्या के स्थायी समाधान हेतु आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा प्रविधि प्रस्तुत की। घृणा का संस्कार व्यक्ति के नर्वस सिस्टम् में आ गया है। उसे अहिंसा प्रशिक्षण के द्वारा ही मिटाया जा सकता है। ऐसा महाप्रज्ञ का अभिमत रहा। अहिंसा प्रशिक्षण के प्रायोगिक पक्ष से अनेक मुस्लिम युवक जुड़ रहे हैं, कार्यकर्ता तैयार हो रहे हैं। जिसका जीवंत प्रयोग लाडनूं में जैन विश्वभारती संस्थान (विश्वविद्यालय) में देखा जा सकता है। हिन्दू-मुस्लिम एकता की दृष्टि से गांधी एवं महाप्रज्ञ के प्रयत्न निश्चित रूप से मानवतावादी हैं सदियां जिससे उपकृत होती रहेगी। मोक्ष विचार जिस भूमिका पर अहिंसा कृतार्थ बन जाती है उस सर्वोच्च अवस्था का तात्त्विक नाम है-मोक्ष। गांधी एवं महाप्रज्ञ दोनों ने मोक्ष को केवल स्वीकारा ही नहीं अपितु उस पर पर्याप्त प्रकाश डाला। गांधी दर्शन के अध्ययन से ज्ञात होता है कि मोक्ष की अवधारणा उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति से ग्रहण की पश्चात् उस पर अपने चिंतन की पुष्टि दी। गांधी ने कहा-प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अहिंसा के सिद्धांत को आखिरी मर्यादा तक पहुँचाया है और यह कह दिया कि भौतिक जीवन एक दोष है, एक जंजाल है। मोक्ष देहादि के परे की ऐसी अदेह सूक्ष्म अवस्था है, जहाँ न खाना है, न पीना है और इसीलिए जहाँ न दूध दूहने की आवश्यकता है और न घास-पात को तोड़ने की। संभव है इस तत्त्व को समझना या ग्रहण करना कठिन हो। सम्भव है कि पूर्णतः उसके अनुकूल जीवन व्यतीत 396 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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