SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किए बिना अपनी देह को टिकाये नहीं रह सकता। सभी कोई (क) अपनी देह की रक्षा के लिए (ख) अपने रक्षणीय की रक्षा के लिए (ग) कभी-कभी उन्हीं जीवों को शान्ति देने के लिए-अनेक जीवों का वध करते हैं। गांधी की सूक्ष्म दृष्टि में शाकाहार भी हिंसा की कोटि में आता है। उनका कहना था भाजी खाने वाला भी हिंसा करता है। जगत् हिंसामय है। देह धारण करने का मतलब है, हिंसा में शरीक होना।” ऐसी हालत में अहिंसा धर्म का पालन बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनका चिंतन रहा कि 'निरामिष आहारी वनस्पति खाने में हिंसा है' यह जानता हुआ भी निर्दोषता का आरोपण कर मन को फसलाता है। यह भी स्वीकारा कि खेती में सूक्ष्म जीवों की अपार हिंसा है। कार्यमात्र, प्रवृत्ति मात्र, उद्योग मात्र सदोष है।.......खेती इत्यादि आवश्यक कर्म शरीर व्यापार की तरह अनिवार्य हिंसा है। उसका हिंसापन चला नहीं जाता है। हिंसा-अहिंसा का सूक्ष्म अन्वेषण किया। उनके विचारों में अहिंसा व्यापक वस्तु है। हम हिंसा की होली के बीच घिरे हुए पामर प्राणी हैं। यह वाक्य गलत नहीं है कि 'जीव-जीव पर जीता है। मनुष्य एक क्षण के लिए भी बाह्य हिंसा के बिना जी नहीं सकता। खाते. पीते, उठते-बैठते, सभी क्रियाओं में इच्छा-अनिच्छा से वह कछ-न-कछ हिंसा तो करता ही रहता है। यदि इस हिंसा से छूटने के लिए वह महाप्रयत्न करता है, उसकी भावना में केवल अनुकम्पा होती है, वह सूक्ष्म से सूक्ष्म जंतु का भी नाश नहीं चाहता और यथाशक्ति उसे बचाने का प्रयत्न करता है, तो वह अहिंसा का पुजारी है। उसके कार्यों में निरन्तर संयम की वृद्धि होगी; उसमें निरन्तर करुणा बढ़ती रहेगी। किन्तु कोई देहधारी बाह्य हिंसा से सर्वथा मुक्त नहीं हो सकता। हिंसा के सूक्ष्म स्वरूप का चित्रण अहिंसा के विकास की दृष्टि से महत्त्वपर्ण है। ___महाप्रज्ञ ने जीवन से जुड़ी सूक्ष्म हिंसा को स्वीकारा-जब तक शरीर है हिंसा से बचना कठिन है। जीवन के जुड़े कर्म में हिंसा का अवकाश रहता है उदाहरण के तौर पर एक आदमी लिखता है, कलम और कागज के बीच में कुछ दिखाई नहीं देता। यन्त्र से देखें तो कलम और कागज के बीच कितने ही जीव मिलेंगे। जल में जीव है, जमीन में जीव है, एक भी अणु ऐसा नहीं है जहां जीव नहीं है। अर्थात् ज्ञान प्राप्त होने पर अवधि ज्ञानी जब देखते हैं तो जीव ही जीव दिखाई देते हैं। शरीर के साथ जुड़े हिंसा के संबंध को विच्छिन्न करने के उद्देश्य से भगवान् ने बताया-तुम संयम पूर्वक चलो, संयम से ठहरो, संयम से बैठो, संयम से सोओ, संयम से खाओ-पाप का बन्धन नहीं होगा। जीव है या नहीं उसे छोड़ दो। हिंसा से बच पाते हैं या नहीं, पर भावना से तो बच ही जाते हैं। आज अहिंसा के साथ जीव का सम्बन्ध जोड़ रखा है और भावना का प्रश्न उड़ा दिया है। कथन में यथार्थ का आकलन है। मनीषी द्वय ने जीवन से जुड़ी अनिवार्य हिंसा को स्वीकारा एवं पूर्ण अहिंसक जीवन के आदर्श को प्रस्तुत किया। अहिंसा के स्थूल स्वरूप से कहीं अधिक गम्भीर है उसका पारदर्शी सूक्ष्म स्वरूप। यह दोनों के विमर्श का विषय रहा। चिन्तन के स्वातंत्र्य पर मनीषियों ने अहिंसा के सूक्ष्म स्वरूप का मंथन किया। गांधी की दृष्टि में अहिंसा का अर्थ है प्रेम का समुद्र, वैरभाव का सर्वथा त्याग। अहिंसा में दीनता, भीरुता न हो। डरकर भागना भी न हो। अहिंसा में दृढ़ता, वीरता, निश्छलता हो।......अहिंसा लूले-लंगड़े प्राणियों को न मारने में ही समाप्त नहीं होती। अहिंसा के माने पूर्ण निर्दोषिता ही है। पूर्ण अहिंसा का अर्थ है प्राणीमात्र के प्रति दुर्भावना का पूर्ण अभाव । 388 / अँधेरे में उजाला
SR No.022865
Book TitleAndhere Me Ujala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaralyashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy